Thursday, May 24, 2007

मजबूरी

मदिरालाय में यार कभी
प्याले की शर्त नही होती,
जो सच्चा प्रेम पूजारी हो,
वो आँखों से रस पान करे ,

ना शर्त कभी कोई रखना,
ना आँखों से मदिरा चखना/
जब रह चुनी है ख़ुद मैने ,
तो फिर मरने से क्या डरना/

मान अनुभव की कमी मुझे ,
छ्ल यार नही मुझको दिखता /
पैर दोष तो है सारा उसका ,
जो सार वहाँ बैठे लिखता /

कुछ उसकी भी मजबूरी होगी,
थोड़ी तो श्र्म जरूरी होगी/
प्र सोचो श्याम बिना ज़्ग मे,
राधा कैसे पूरी होगी/

प्रेम अगर सच्चा होगा
फ़ीर स्वती बूँद भी बरसेगा /
जो सच्चा प्रेम पूजरी होगा,
स्ट वरसों तक तरसेगा /

हम बस कर्म करें अपना,
परिणाम की क्या चिंता करना /
आनंद मिल्ले यौवन घट मे,
पूजा मदिरालाय मे करना /



1 comment:

  1. कुछ उसकी भी मजबूरी होगी,
    थोड़ी तो श्र्म जरूरी होगी/
    प्र सोचो श्याम बिना ज़्ग मे,
    राधा कैसे पूरी होगी/

    वाह क्या बात है ..बहुत ही सुंदर और गहरी बात

    हम बस कर्म करें अपना,
    परिणाम की क्या चिंता करना /
    आनंद मिल्ले यौवन घट मे,
    पूजा मदिरालाय मे करना

    बहुत सुंदर लिखते हैं आप .लिखना जारी रखे ..आपकी अगली रचना का इंतज़ार रहेगा

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