Wednesday, September 26, 2007

"आधुनिक वातावरण"

जो जितना त्याग करे वस्त्रों का,
वो उतनी अच्छी मॉडेल है
जिससे तन ढकता हो कम,
वही आज कल फ़ैशन है

द्वपार मे आकर दुष्यासान,
फ़र्ज़ी मे बदनाम हुआ
सको आना था कलियुग मे,
जहाँ वस्त्र का केवल नाम बचा

है द्रौपदि का गोल यहाँ,
उर्मिला सी कम दिखती हैं
और कागज़ी नोटों पर,
हर रोज़ मेनका बिकती है

जब स्तर गिरता है कपड़ों का,
तब स्टेटस बढ़ता है
क्यूं गिरे ना फिर स्तर ज़ीवन का,
जहाँ यार फिगर बस दिखता हो

चाहे ऑफीस का द्वार हो कोई,
या टटपुजीया अख़बार हो कोई
यार कौड़ी यों की भावो में,
शर्म यहाँ पर बिकता है

प्राणी अलग नही तुमसे मैं ,
यार तुम्हारे जैसा ही हूँ
पर यार ख़टकती हैं कुछ बातें,
जो मैं ख़ुद से कहता हूँ

मैं छमा प्रर्थि फ़ैशन का,
गर भूल हुई हो कुछ मुझसे
और छहमा उस नारी जाती से,
श्रिस्टी शुरू हुई जिससे

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