Wednesday, September 26, 2007

"समय चक्र"

एक सपना देखा था मैने,एक सपना ख़ुद चल आया था,
एक टूट गया जब जागा  मैं, दूजे को ख़ुद ठुकराया था |
माना की दौलत साथ न थी ,पर हम राजा सम दिखते थे,
थी ख़ुशियाँ क़दमो में अपने, और पाव हवा मे चलते थे |
यार समय का चक्र जहाँ , कुछ धीरे-धीरे चलता था,
जहाँ बच्चा माँ की आँचल में, निर्भय होकर सोता था |
जब यार भयानक सपने भी, गोद मे आ खो जाते थे,
गरज बरस अस्कों  के बदल,  आंचल मे जम जाते थे |
जब काम नही करने का फल, हमको हाथो पर दिखता था,
जब यार किताबों के  पन्नो पर, नाम किसी का लिखता था
यार खुली आँखों मे जब , कुछ ख्वाब नये से सजते थे,
और नये से चित्र कई जब, अपने  बटुए मे  सजते  थे |
वो यार बचा कर जब नज़रे, हम राह किसी का तकते थे
एक दिल के लाखो टुकड़े कर, फिर सबको बाँटा करते थे  |
कुछ के दाँतो के कायल थे,  कुछ के चेहरे पर मरते थे,
कुछ चलती थी बल खा के, हम जिनको घुरा करते थे  |
हर गलियों मे चौबरों पर, फिर प्यार हमे हो जाता था,
जब भी नज़रे टकराई तो, दिल का टुकड़ा खो जाता था  |
पर यार शाम घर आने पर, सीधा बच्चा बन जाता था,
थी आँचल मे इतनी ख़ुशिया, कुछ याद नही फिर आता था |
अब अस्कों  की सागर मे, यादों की नाव चलाता  हू,
फिर रिस्तों की डोरी संग , आप लिपटता जाता हूँ |
कुछ पाने का अहम्  है तो, कुछ खो जाने का ग़म भी है,
कुछ यादें मीठी सी दिल में, कुछ बात से आँखे नम  भी है |

1 comment:

  1. कुछ पाने का ग़म है तो, कुछ खो जाने का ग़म भी है
    कुछ यादें मीठी सी दिल में,कुछ बात से आँखे नाम भी है

    yah bahut achhi lagi ...bahut khoob

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