तन शीतल है यार मगर, ना जाने क्यूं दिल जलता है |
हूँ रुका हुआ मैं वरसों से, दिल मे हरदम कुछ चलता है |
रास नही कुछ भी आता, ना सूनापन मुझको भाता |
आँखों मे है कुछ धुंधला सा, जो स्पस्ट नही होता |
मैं कुछ भी भूल नही पाता, फिर कुछ भी याद नही आता |
कोई चेहरा अन्जाना सा, मैं जिसको भूल नही पाता |
ग्वालाएँ रास नही आए, ना राधा ही मन को भाए |
कृष्ण नही बनना चाहूं, ना रास बिना ये दिल माने |
आँखों में सागर मेरे पर, कंठ मेरे अब भी प्यासे |
ना कोई स्वर्ग की चाह मुझे, ना बीना मेनका आँख लगे |
ना मदिरा की प्यास मुझे, ना काम बीना मदिरा चलता |
ना देवदाश सा मैं पागल, ना बीन पारो ही मन लगता |
व्यथा मेरी सुन कर अक्सर, संसार ये कहता है हँस कर |
राम -राम की बेला मे, देखो बैठा है फिर पी कर |
Thursday, May 31, 2007
टूटे हुए से माँगना......
है बहुत आसान यहाँ, टूटे हुए से माँगना |
पर नही आसान, क्यूं टूटा हमारा जानना |
कौन है सूरज यहाँ, ये जानते है लोग सब |
पर नही आसान,क्यूं जलता है वो ये जानना |
रोशनी दीपक से है, ये जानना आसान है |
दर्द परवानो का क्या, मुस्किल है यारो जानना |
है अमर इतिहास में, अब भी करोणो सूरमा |
है नही आसान अब, उनके क़ब्र को पहचानना |
है बहुत आसान, यहाँ टूटे हुए से माँगना |
पर नही आसान, क्यूं टूटा हमारा जानना |
पर नही आसान, क्यूं टूटा हमारा जानना |
कौन है सूरज यहाँ, ये जानते है लोग सब |
पर नही आसान,क्यूं जलता है वो ये जानना |
रोशनी दीपक से है, ये जानना आसान है |
दर्द परवानो का क्या, मुस्किल है यारो जानना |
है अमर इतिहास में, अब भी करोणो सूरमा |
है नही आसान अब, उनके क़ब्र को पहचानना |
है बहुत आसान, यहाँ टूटे हुए से माँगना |
पर नही आसान, क्यूं टूटा हमारा जानना |
Friday, May 25, 2007
तनहाई
जब भी ख़ुद को तन्हा पाया,
फिर सोचा कुछ यार लिखूं |
लिख दूं काग़ज़ पर बात सभी,
या सब बातों का सार लिखूं |
पर क्या दिल की सारी बातें,
एक काग़ज़ पर आ सकती हैं |
क्या मेरे जस्बात कभी,
ये स्याही लिख सकती है |
फिर सोचा अस्क बहाना क्या,
बीते पर फिर पछताना क्या |
गर टुटे हैं कुछ सपने तो,
सपनों का शोक मनाना क्या |
फिर सोचा की मुस्कान लिखूं,
दिल के नूतन अरमान लिखूं |
लिख दूं ममता का मैं आँचल,
घर के आँगन की शाम लिखूं |
पर यार सुहाने पल भी अब,
दिल में कुछ ऐसे चुभते हैं |
ताज रखा हो जब सर पर,
पर पैर मे कांटें चुभतें हो |
फिर सोचा कोई मुझसा होता,
मैं जिसको हाल सुना पाता |
कुछ सुनता मैं बातें उसकी ,
कुछ अपने अस्क बहा पाता |
फिर सोचा कोई मुझसा हो,
या फिर मैं उस जैसा हूँ |
पर यार नही मुझसा कोई ,
और ना मैं ही उस जैसा हूँ |
फिर सोचा क्या तनहाई है,
क्या किस्मत उसने पाई है |
हर पल मैं साथ रहूं उसके ,
फिर भी इतना सकुचाई है |
बातों का सार नही होता,
पर बातें संसार चलाती है |
कुछ बातें उड़ती हैं नभ मे,
और कुछ बातें दब जाती है|
फिर सोचा कुछ यार लिखूं |
लिख दूं काग़ज़ पर बात सभी,
या सब बातों का सार लिखूं |
पर क्या दिल की सारी बातें,
एक काग़ज़ पर आ सकती हैं |
क्या मेरे जस्बात कभी,
ये स्याही लिख सकती है |
फिर सोचा अस्क बहाना क्या,
बीते पर फिर पछताना क्या |
गर टुटे हैं कुछ सपने तो,
सपनों का शोक मनाना क्या |
फिर सोचा की मुस्कान लिखूं,
दिल के नूतन अरमान लिखूं |
लिख दूं ममता का मैं आँचल,
घर के आँगन की शाम लिखूं |
पर यार सुहाने पल भी अब,
दिल में कुछ ऐसे चुभते हैं |
ताज रखा हो जब सर पर,
पर पैर मे कांटें चुभतें हो |
फिर सोचा कोई मुझसा होता,
मैं जिसको हाल सुना पाता |
कुछ सुनता मैं बातें उसकी ,
कुछ अपने अस्क बहा पाता |
फिर सोचा कोई मुझसा हो,
या फिर मैं उस जैसा हूँ |
पर यार नही मुझसा कोई ,
और ना मैं ही उस जैसा हूँ |
फिर सोचा क्या तनहाई है,
क्या किस्मत उसने पाई है |
हर पल मैं साथ रहूं उसके ,
फिर भी इतना सकुचाई है |
बातों का सार नही होता,
पर बातें संसार चलाती है |
कुछ बातें उड़ती हैं नभ मे,
और कुछ बातें दब जाती है|
Thursday, May 24, 2007
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