Monday, June 4, 2007
ना शाख बची बाक़ी कोई,
ना शाख बची बाक़ी कोई,सब शखा पुराने छूट गाएं |
अब तो रोटी के चक्कर में,सब धमा चौकड़ी भूल गाएं |
दिल मे यादें कुछ धूधली सी,कुछ काली सी कुछ उजली सी |
वो यार का ग़ुस्सा मोटा सा ,वो जान की मुस्की दुबली सी |
अब तो हऱ चौबारे पऱ, हऱ नल पऱ फ़ौवारे पऱ |
एक याद बची है धुंधली सी,कुछ काली सी कुछ उजली सी |
ग़ुस्से से गाल फूला लेना, फिर अगले पल मुस्का देना |
मेरे बारे में कहते कहते, फिर उसका आँख चुरा लेना |
वो मुझसे लड़ना रोज़ाना, फिर एकदम से शर्मा जाना |
वो बादल से बिजली गिरना, और उसका घबरा जाना |
मुझसे लड़ना मेरी खातिर, फिर घंटो तक चुप हो जाना |
मेरे पीछे मेरी खातिर, उसका दुनियाँ से लड़ जाना |
ना शाख बची बाक़ी कोई, सब शखा पुराने छूट गये |
अब तो रोटी के चक्कर में, सब धमा चौकड़ी भूल गये |
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