कुछ सपने ओढूंगा मैं, कुछ सपनो पर सो जाऊंगा
जब तक सपने साकार ना हो, आँखों को ख़ूब थकाऊँगा
सपनो का शीश महल होगा, जिसमे आशा का पर होगा
शायद पृथ्वी के आँचल मे, अपना एक सुंदर कल होगा
सपनो की परिभाषा को, सपनो से यहाँ बदलना है
काँच के सपनो को हिम्मत कर, फ़ौलादों पर मढ़ना है
हो सपनो का परिणाम यहाँ,सपनो का फिर परिमाण ना हो
हो जन गण मन की गूँज जहाँ, वहाँ जन के मन की हार ना हो
हो हर सपनो मे प्यार भरा, सपनो मे भ्रष्टाचार ना हो
हों अपने ऐसे सपने कि, फिर आज़ादी बेकार ना हो
Tuesday, October 2, 2007
"यादों की गागऱ से"
मेरे यादों की गागऱ से मैं, रोज़ समंदर भरता हूँ
महफिल मे तन्हाई मे बस उसकी बाते करता हूँ
वो यार समंदर का घट है, मैं हर दिन प्यासा मरता हूँ
वो है गंगा जल की धारा, और मैं गलियों मे बहता हूँ
वो यार आरती पूजा की, मैं बस कपूर सा जलता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा , मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सुराही का घट है, मैं राही प्यासा बैठा हूँ
वो अमृत की बूँद सद्रिश, मैं यार गरल के जैसा हूँ
वो यार समाहित है मुझमे, मैं उसको खोजा करता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सति सीता जैसी , मैं इन्द्र सा हट कर बैठा हूँ
वो गीता है महाभारत की, मैं पार्थ सा ज़िद्द कर बैठा हूँ
उसे याद नही बीता कुछ भी, पर मैं अतीत संघ बैठा हूँ
वो दुनियाँ का नूतन भविष्य, मैं तो अतीत संघ लिपटा हूँ
उसको नफ़रत है ग़ज़लों से, पर मैं ग़ज़लों मे जीता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
महफिल मे तन्हाई मे बस उसकी बाते करता हूँ
वो यार समंदर का घट है, मैं हर दिन प्यासा मरता हूँ
वो है गंगा जल की धारा, और मैं गलियों मे बहता हूँ
वो यार आरती पूजा की, मैं बस कपूर सा जलता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा , मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सुराही का घट है, मैं राही प्यासा बैठा हूँ
वो अमृत की बूँद सद्रिश, मैं यार गरल के जैसा हूँ
वो यार समाहित है मुझमे, मैं उसको खोजा करता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सति सीता जैसी , मैं इन्द्र सा हट कर बैठा हूँ
वो गीता है महाभारत की, मैं पार्थ सा ज़िद्द कर बैठा हूँ
उसे याद नही बीता कुछ भी, पर मैं अतीत संघ बैठा हूँ
वो दुनियाँ का नूतन भविष्य, मैं तो अतीत संघ लिपटा हूँ
उसको नफ़रत है ग़ज़लों से, पर मैं ग़ज़लों मे जीता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
प्यार या फिर धोखा
जो शब्दों मे बँध जाए ,वो प्यार नही है धोखा है
यहाँ नही शिव सा कोई, जो गरल कंठ मे रोका हो
जो दिखता है प्यार सद्रिश,वो मिराज है धोखा है
जो यार सूखा दे सागर को, वो राम कहाँ पर देखा है
आँखों की भाषा पढ़ने मे, आँखे भी धोखा खाती है
कहाँ बचा वो सन्यासी, जो मन की भाषा पढ़ता हो
यार पूराने वस्त्रो के संघ, साथी यहाँ बदलता है
कहाँ सती सीता बाक़ी अब, जो अग्नि संग जलती हो
हर दिल मे जवाला यौवन की,प्यार उसी संघ जलता है
कहाँ बचा वो देव दाश, जो यार दिए सम जलता हो
यहाँ नही शिव सा कोई, जो गरल कंठ मे रोका हो
जो दिखता है प्यार सद्रिश,वो मिराज है धोखा है
जो यार सूखा दे सागर को, वो राम कहाँ पर देखा है
आँखों की भाषा पढ़ने मे, आँखे भी धोखा खाती है
कहाँ बचा वो सन्यासी, जो मन की भाषा पढ़ता हो
यार पूराने वस्त्रो के संघ, साथी यहाँ बदलता है
कहाँ सती सीता बाक़ी अब, जो अग्नि संग जलती हो
हर दिल मे जवाला यौवन की,प्यार उसी संघ जलता है
कहाँ बचा वो देव दाश, जो यार दिए सम जलता हो
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