Thursday, December 25, 2008

नखरे पड़ोसन के.||||........||||

यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||

है ढीला- ढाला नेबर मेरा , पर यार पड़ोसन टाईट है |
जितने मे मेरा ब्रेकफास्ट, उतनी जानम की डाएट है ||

मैं अमजद जी सा टाईट, वो यार तनुश्री दिखती है |
यार खड़ी जब बालकोनी मे, तिरछी नज़रों से तकती है ||

था यार अटल सा सुस्त कभी,अब लालू जैसा दिखता हूँ |
वो यार दूधारू भैंस मेरी, और मैं बाल्टी जैसा तकता हूँ ||

दिल में कुछ-कुछ होता है, जब उसको देखा करता हूँ |
नखरे सब सहता हूँ उसके, और लव-यू लव-यू कहता हूँ ||

सायद ये मेरे ख्वाब कभी, झटके से सच हो जाएँगे |
जब यार पड़ोसन के बच्चे, मुझे अब्बा कहकर बुलाएँगे ||

यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||

7 comments:

  1. भाई मजा आगया,
    हम आपके दर्द में बराबर शामिल रहेंगे, शायद आपके पडोसन की पडोसन हमें भी पसंद आ जाए ;-)

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  2. बहुत बढ़िया, भई

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    चाँद, बादल, और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com/

    गुलाबी कोंपलें
    http://www.vinayprajapati.co.cc

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  3. bahut bahut shukriya aap sabhi logo ka

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  4. बहुत मजेदार कविता है.

    :)

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