Tuesday, September 30, 2008

राम राज का स्वप्न

है राजनीति का जो स्तर,फिर एकदिन ऐसा आएगा |
दौलत के बिस्तर के उपर, बिकता पकड़ा जाएगा |

राज उसी का चला करेगा, जिसके हांत मे लट्ठ होगा |
अब जो सच का साथी होगा, वो पीटता पाया जाएगा |

जिसके हांतो सत्ता होगी, फिर सबको वही सताएगा,
और पाँच वर्ष का प्रेम भाव, दंगो से तोड़ा जाएगा |

काम उसीका हुआ करेगा, जो कुछ भेंट चढ़ाएगा |
उसका होगा अल्ला मालिक वो रूल नियम मे जाएगा |

रंग तिरंगे का अब जब, मज़हब मे बँट जाएगा |
केसरिया मे हिंदू होगा, हरे मे मुल्ला आएगा |

जिसके तन पर होगा सफेद, वो भ्रस्टाचार बढ़ाएगा |
और अशोक का चक्र यहाँ, षडयंत्रों से घिर जाएगा |

जो होगा मुखिया अपना, उसे चाभी से चलना होगा |
लघु शंका जाने से पहले, उसे सबका मत लेना होगा |

अब आरच्छन का दानव, हर मानव पर हावी होगा |
जाति पाती का फ़र्क यहाँ, अब जनमत पर भारी होगा |

अब जनता का राज कोष, प्रतिनिधियों पर खाली होगा |
सत्य अहिंसा का प्रतिक, अब भारत मे गाली होगा |

राम राज का स्वप्न यहाँ अब हर चुनाव दिखलाएगा |
जो राम बनेगा इस चुनाव मे, पाँच साल तक खाएगा |

राम ईसा रहमान यहाँ , अब यार चुनावी मुद्दे होंगे |
शांति दूतो के नाम पर अब, हर रोज यहाँ दंगे होंगे |

शायद कहने से आनंद के, फ़र्क यहाँ कुछ पड़ पाता |
तो खुद से आँख मिलाने मे,अपना भारत ना शरमाता |

भारत मय करना होगा



हो हर लभ पर अपना नाम ,
अब कुछ ऐसा करना होगा |
अगर चाहिए नाम जहाँ मे,
कुछ हट कर करना होगा |

ख्वाब अगर उँचा है फिर तो,
कदम बढ़ा चलना होगा |
और विश्व के मानचित्र को ,
भारत मय करना होगा |

सत्य अहिंसा के प्रतीक को,
अब संशोधित करना होगा |
गर आँख उठे हम पर कोई,
उसे भाव शुन्य करना होगा |

ईंट जो फेके अब हम पर,
फिर उसको भी बचना होगा |
लोहे से टकराने का फिर,
अब हरजाना भरना होगा |

गाँधीगिरी चलाने से पहले,
हमको सुभाष बनना होगा |
सत्याग्रह को त्याग यहाँ,
अब क्रांतिकारी बनना होगा |

हांत के पाँचो उंगली को,
सहयोग यहाँ देना होगा |
और पूराने मानचित्र मे,
रंग नया भरना होगा |

घर के अंदर के शत्रु को,
अपना सर देना होगा |
यार दो मुहे साफॉ का फन,
हमे कुचल देना होगा |

हम छमा करे इससे पहले,
कुछ दंड यहाँ देना होगा |
हो मान धरा पर कुछ अपना,
हमको विषधर बनना होगा |

ख्वाब अगर उँचा है फिर तो,
कदम बढ़ा चलना होगा |
और विश्व के मानचित्र को ,
भारत मय करना होगा |

Monday, September 22, 2008

शांति के राज दूत बापू




यार अहिंसा के द्योतक को,
हमने क्या क्या दिखा दिया|
हिंसा के कारक पर हमने,
बापू का फोटो लगा दिया|

वो सामिल हैं घुसखोरी मे,
छोटी से छोटी चोरी मे |
राम राज का स्वप्न यहाँ अब,
बंद है आज तिजोरी मे |

अब उसके खद्दर के अंदर,
उनके हर अरमान जलते है |
यार पहन कर अब खादी,
यहाँ लोग घोटाला करते हैं |

अब उसके लाठी के उपर,
राज यहाँ पर चलता है |
जिस दीवार पर चित्र लगा हो,
सब प्लान वही पर बनता है |

अब बापू के जन्म दिवस पर ,
ड्राई डे हो जाता है |
पर मदिरा बहती है निर्झर,
दाम ज़रा बढ़ जाता है |

यार अहिंसा के द्योतक को,
हमने क्या क्या दिखा दिया |
विश्‍व शांति के राज दूत को,
सोचो हमने क्या बना दिया |

Sunday, September 21, 2008

कुछ मृग-त्रिस्ना की प्यास भी हो

एक बार मुझे मई मिल जाऊ ,
खुद के सपनो मे दिख जाऊ |
मंज़िल की चाह जागे दिल मे,
जिस पथ पर मैं पग धार जाऊ |

कुछ यार अहम का भाव भी हो,
सब कुछ पाने की चाह भी हो |
हो शूल बिछे कुछ राहों मे ,
कुछ प्रतिस्पर्धा का भाव भी हो |

मुझको ठुकरा कर जाने में ,
उसे दर्द का कुछ आभाष तो हो |
वो भूल ना पाए यार मुझे ,
इस बात का फिर विश्वास तो हो |

है बना काँच का तन मेरा ,
जब टूटे तब झंकार भी हो |
है सांस बची जब मरुथल मे,
कुछ मृग-त्रिस्ना की प्यास भी हो |

मेरे यार खुशी के मौके पर ,
कुछ अस्कों की बौछार भी हो |
प्यार मिले कुछ पाने पर,
कुछ खोने पर फटकार भी हो |

कुछ खून मे हो गर्मी अपने,
कुछ यार छमा का भाव भी हो |
कुछ रिस्टो मे हो कड़ुआहट,
कुछ रिस्तो मे बस प्यार ही हो|||||||

Tuesday, September 16, 2008

उड़ने की कोशिश




मैं यार यहाँ बिन पँखो के ,
उड़ने की कोशिश करता हूँ |
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ मे,
पैदल चलने से डरता हूँ |

मैं यार खुली आँखों से अब,
कुछ सपने ढूँढा करता हूँ |
इस सपनो की दुनियाँ मे ,
अब खो जाने से डरता हूँ |

जो यार नही मेरा अपना ,
मैं उसको ढूँढा करता हूँ |
मैं यार मतलबी दुनियाँ मे ,
तन्हा रहने से डरता हूँ |

मैं यार समंदर के तल पर ,
कुछ मोती ढूँढा करता हूँ |
मैं यार आलसी दुनियाँ मे ,
मेहनत करने से डरता हूँ

मैं यार तरंगो की दुनियाँ मे,
कुछ खुशियाँ ढूँढा करता हूँ |
मैं रंग बिरंगी दुनियाँ के,
काले धब्बों से डरता हू |

शैतान का डर




ना राम से डर है ,
ना ही रहमान से डर है |
नही मज़हब यहाँ जिसका,
उसी शैतान का डर है |

दीवारे यार फौलादी है,
और हर राहो पर पहरा है|
छुपा है यार जो घर मे उसी,
उसी भेदी का बस डर है|

मुझे मुझसे जुदा करने को,
चले चाले जो अब हर पल |
मेरी परछाईयो को यार,
उस काली रात का डर है |

मुझे जो पास अपने रोक कर ,
फिर बरगलाता है |
करे जो रूह काबू मे,
उसी पंडित से ख़तरा है |

नही डर कुछ धमाकों से,
जो पसरा इस शहर मे है |
जो फूँके जहर कानों मे ,
उसी मुल्ला से ख़तरा है |

ये घर अपना है कहने को ,
लगा हर ईंट अपना है |
जो नीचे जानवर है ,
अब उसी अपने से ख़तरा है|