Saturday, October 25, 2008

मने ऐसी दिवाली अब !!!



हो सारी बात शुखदायी,
जो बीते ज़िंदगी मे अब |
जलाओ अब दिए ऐसे,
जगमग हो यहाँ हर कण |

ना कोई यार गुम-सूम हो
ना कोई यार हो चुप-चुप |
खुले अब गाँठ सब दिल के,
मने ऐसी दिवाली अब |

ना कोई यार हो भूखा,
ना कोई घर अंधेरा हो |
मिले ऐसे गले अब कि,
फिर रातों मे सबेरा हो |

इस प्यार के बाज़ार मे,
अब मंदी ना हो कोई |
मुनाफ़ा हर जगह फैले,
मने ऐसी दिवाली अब |


आप सभी को मेरी तरफ से हार्दिक शुभ कामनए!!

Tuesday, October 21, 2008

" ऊर्जा "आज का युवा और गिरती राजनीति


ऊर्जा हमी मे है कि हम, ब्राम्‍हांड का निर्माण कर दें |
और जब भटके कभी तो, विश्‍व का निर्वाण कर दें |

चाहे तो हमे कर नियंत्रित, उर्जा का भंडार कर लो |
या तो घट जाए ग़लत कुछ, इससे पहले ही निकल लो |

हम भी काँटों से बने है, ना समझ हमे फूल रौंदो |
नासूर बन जाए यहाँ ,तुम इससे पहले ही सुधर लो |

छोटे से ढेले है, ना मसलो , चूर हम हो जाएँगे |
पर उड़ के आँखो मे गये तो, आँख ही ले जाएँगे |

बन के तमासाई ,ना अब तमाशा यार देखो |
गर मदारी हम बने, बंदर हमारे यार तुम हो |

है अनियंत्रित कण, हम जब निकले तो टकराएँगे |
अपनी तो हस्ती नही कुछ,तुझको मिटा कर जाएँगे |

रोक लो आँधी, और बहने दो हवा कुछ मंद |
खुशबू हो चारो तरफ, और फैला हो आनंद |

Friday, October 17, 2008

१२०२७ रन बनाने के लिए सचिन "रिकॉर्ड " तेंदुलकर को हार्दिक बधाई !!!!




मुस्किलों से ही सही,
टूटा है फिर एक आसमाँ |
और विश्‍व के पृष्ट पर,
चमका है फिर ये हिंदोस्ता |

गर्व हमको है यहाँ ,
अब जन्म लेने के लिए |
जन्म लेते हो जहाँ ,
सदियों मे ऐसे सूरमा |

टूटते बनते रहेंगे ,
यार ऐसे कीर्तिमान |
पर नही आएगा अब,
तेंदुलकर सा सूरमा |

Thursday, October 9, 2008

मैं बचपन मे कितना सच्चा था |





यूँ घुट घुट कर जीने से,
मेरा मर जाना अच्च्छा था |

क्यूँ पंख कतर कर छोड़ दिया,
इससे अच्छा वो पिंजरा था |

छलक रहा हूँ इधर उधर,
इससे अच्छा मै सूखा था |

यों कमर पर चढ़ इतराने से,
मैं कच्चा घट ही अच्छा था |

जल मग्न हुई इस दुनिया मे,
मेरा सुखापन अच्छा था. |

मरु बनकर उड़ता मरूभूमि मे,
मै खो जाता तो अच्छा था |

अर्ध नग्न हुई इस दुनियाँ मे,
मै पूरा नंगा ही अच्छा था |

यौवन के ज्वलन उजाले से
मेरा अंधेरा बचपन अच्छा था |

मुझे याद हैं वो बातें सारी
मैं बचपन मे कितना सच्चा था |

Wednesday, October 8, 2008

नीरज: चाँद की बातें करो

नीरज: चाँद की बातें करो

हाथ रख लो दी पर, कोई रास्ता बन जाएगा |
तुम चलोगे साथ तेरे कारवाँ बन जाएगा |

Tuesday, October 7, 2008

सब भाव कहीं पर छूट गये |


सुख गयी स्याही सारी,
कागज के पन्ने भींग गये |
जब दिल ने चाहा लिखना,
सब भाव कहीं पर छूट गये |

सोचा छन्दो का बंधन हो,
दोहों का भी अभिनंदन हो |
पर मेरे रचनाओं से,
रस, अलंकार तक रूठ गये |

अब रिस्तो की गाँठो मे भी,
पहले जैसा भाव नही,
मुझको गले लगाने को,
अब कोई भी तैयार नही |

है हर शब्दों मे व्यंग भरा,
अब जो मुझसे टकराती है |
बात करू किससे दिल की,
जब अपने ही कतराते हैं |


सुख गयी स्याही सारी,
कागज के पन्ने भींग गये |
जब दिल ने चाहा लिखना,
सब भाव कहीं पर छूट गये |