यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||
है ढीला- ढाला नेबर मेरा , पर यार पड़ोसन टाईट है |
जितने मे मेरा ब्रेकफास्ट, उतनी जानम की डाएट है ||
मैं अमजद जी सा टाईट, वो यार तनुश्री दिखती है |
यार खड़ी जब बालकोनी मे, तिरछी नज़रों से तकती है ||
था यार अटल सा सुस्त कभी,अब लालू जैसा दिखता हूँ |
वो यार दूधारू भैंस मेरी, और मैं बाल्टी जैसा तकता हूँ ||
दिल में कुछ-कुछ होता है, जब उसको देखा करता हूँ |
नखरे सब सहता हूँ उसके, और लव-यू लव-यू कहता हूँ ||
सायद ये मेरे ख्वाब कभी, झटके से सच हो जाएँगे |
जब यार पड़ोसन के बच्चे, मुझे अब्बा कहकर बुलाएँगे ||
यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||
Thursday, December 25, 2008
बीते बातों की चादर....
बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||
यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||
कैसा दिखता था तब मै, ये खुद से पूछा करता हूँ |
उसके कदमो के आहट से,मैं अब भी चौंका करता हूँ ||
चुप रह कर भी वो उसका, सारी बातें कह जाना |
वो उसका झुक कर चलना, फिर धीरे से मुस्काना ||
वो चादर जितनी लम्बी है, यादे उतनी ही गहरी है |
आसान है इसमे खोना पर, मुस्किल है बाहर आना ||
बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||
यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||
कैसा दिखता था तब मै, ये खुद से पूछा करता हूँ |
उसके कदमो के आहट से,मैं अब भी चौंका करता हूँ ||
चुप रह कर भी वो उसका, सारी बातें कह जाना |
वो उसका झुक कर चलना, फिर धीरे से मुस्काना ||
वो चादर जितनी लम्बी है, यादे उतनी ही गहरी है |
आसान है इसमे खोना पर, मुस्किल है बाहर आना ||
बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
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