Thursday, January 15, 2009

समंदर से कर दुश्मनी........

समंदर से कर दुश्मनी,
मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |

खिचता था लकीरे किनारों पर मैं,
पर साहिल पर मुझको भरोशा ना था |
ख्वाब अपने भिंगो करके अश्को से मैं,
काल के गाल मे ही छुपाता रहा |

जब बनाने लगा घोंसला प्यार का,
रुख़ हवाओं का भी फिर बदल सा गया |
जो हवाए फिर देती थी दिल को सुकून,
आज वो भी अचानक दहकने लगी |

चाँद पूरा था जो कल तक आकाश मे,
आज वो भी ग्रहण से प्रभावी लगा |
पी कर जिसको भुलाता था संसार को,
आज बोतल वही फिर नशे मे लगी |

समंदर से कर दुश्मनी,
मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |

6 comments:

  1. चाँद पूरा था जो कल तक आकाश मे,
    आज वो भी ग्रहण से प्रभावी लगा |
    पी कर जिसको भुलाता था संसार को,
    आज बोतल वही फिर नशे मे लगी |

    बहुत खूब कहा आपने

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  2. sach bahut bhavpurn rachana badhai.

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  3. बहुत बढ़िया

    ---
    आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  4. समंदर से कर दुश्मनी,
    मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
    हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
    वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |

    WAH......!!
    Tapashwani ji upar k dono stanza bhot badhiya lage.......

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