Friday, January 16, 2009

कोई सरफिरा

कभी मेरे हाथो मे भी हाथ होगा ,
कोई सरफिरा तब मेरे साथ होगा |
अकेला हूँ मैं, राह भी कुछ बड़ी है,
कभी मेरे पीछे भी संसार होगा |

भले राह मे आज काँटे बिछे हो,
कभी तो ये राहें आ मुझसे मिलेंगी |
भले सारी नदियाँ हो उफान पर अब,
कभी तो ये सागर से ही जा मिलेंगी |

भले दुनिया मुझपर नही दाव खेले,
मगर मुझको खुद पर अभी भी यकी है |
भले रात काली भयानक कटी हो,
सूरज की किरण कभी तो दिखेंगी |

भले काले बादल से सूरज ढका हो,
कभी इसकी किरण जमी पर पड़ेंगी |
ये माना की परछाईयाँ खो गयी है,
कभी तो ये कदमो मे मेरे मिलेंगी |

मजबूर हूँ लेकिन टूटा नही हूँ,
अभी पाव मेरे खुद उठ कर चलेंगे |
दबा दो भले कब्र मे आज सच को,
वो छुपा ना सकेंगे मेरी अहमियत को |

6 comments:

  1. भले दुनिया मुझपर नही दाव खेले,
    मगर मुझको खुद पर अभी भी यकी है |
    भले रात काली भयानक कटी हो,
    सूरज की किरण कभी तो दिखेंगी |

    यही एक आशा की किरण है सही अच्छा लिखा आपने ..

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  2. बहुत अच्छी और आशा के दीप जलाती हुई पोस्ट है आप की...सकारात्मक सोच से ओत प्रोत ये रचना कमाल की है...
    नीरज

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. बहुत सुन्दर कविता है!

    ---मेरा पृष्ठ
    गुलाबी कोंपलें

    (अरे, माफ़ करना कि गणतंत्र दिवस पर स्वतंत्रता दिवस का विजेट बाँटा अब सही कर दिया है आप नया विजेट साइट पर से ले सकते हैं! धन्यवाद!)

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  5. Waah ! ummeed se bhari sundar rachna,aanandit kar gayi.Aabhaar

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  6. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !
    उम्मीद करता हूँ की आगे भी आप सभी का मार्ग दर्शन मिलता रहेगा |

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