Saturday, January 17, 2009

किसकी सत्ता......साधू कौन

अभी शुरुआत है, ना जाने कितने तीर छुपा रखे है |
हमने इस चेहरे पर,ना जाने कितने चेहरे लगा रखे है |

वो जो दौरे भगदड़ थी, उसकी बिसात कुछ भी नही,
तुम्हारे वास्ते हर घर मे नया जाल बिछा रखा है |

मुझे तू जनता है, ये भूल है और कुछ भी नही,
हमने कितनो को, इसी भ्रम मे फँसा रखा है |

वो बात और है की हम उनसे अलग दिखाते है,
मगर ये अफवाह भी, खुद हमने उड़ा रखा है |

वो तो सच बोलता था, जो भी किया था उसने,
हमने तो खुद से भी, कई राज़ छुपा रखा है |

तुम जितना बेच सको, बेच लो दुनियाँ "आनंद",
बस चार दिन का सही, ये बाज़ार बचा रखा है |

बच के निकल गये तो, अच्छी है किस्मत "आनंद",
वो भी मुझसा ही था,हमने यहाँ जिसको हटा रखा है |

5 comments:

  1. भाव उम्दा है-जरा शिल्प पर और नजर डालें. अफवाह उड़ा रखी है-या रखा है?

    थोड़ा ध्यान देंगे, बहुत बेहतर रचना बनेगी.

    आशा है आप सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे.

    शुभकामनाऐं.

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  2. बच के निकल गये तो, अच्छी है किस्मत "आनंद",
    वो भी मुझसा ही था,हमने यहाँ जिसको हटा रखा है |
    सचमुच अच्‍छा है।

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  3. बहुत ही सुंदर कवीता लिखी है अन्त की पक्तिंया तो एक सच ही है.
    धन्यवाद

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद !
    उम्मीद करता हूँ की आगे भी आप सभी का मार्ग दर्शन मिलता रहेगा |

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