Monday, May 25, 2009

सपथ ग्रहण या ' ग्रहण '

फ़ुट रहे हैं लड्डू दिल में,
ख़त्म हुआ मतदान |
सरे मुद्दे भूल के आओ ,
हम फिर टकराए जाम |

सही गलत की चर्चा छोडो,
यहाँ से नोचो वहाँ पे जोडो |
पांच साल का समय बड़ा है,
गठबंधन से धन गठीयालो |

तुमने मुझपर मैंने तुम पर,
कीचड़ खूब उछाला है |
चलो बदल लें कूर्ता अपना |
जो कीचड़ से कला है |

जनता थी चालाक मगर,
कुछ खास नहीं था करने को |
पांच साल के लिए हमें ,
खुद चुनकर लायी मरने को |

प्रतिनिधि बनकर जनता की,
प्रतिघात उसी पर करना है |
निधि लूट कर जनता की ,
अब खुद की जेबें भरना है |

फ़ुट रहे हैं लड्डू दिल में,
ख़त्म हुआ मतदान |
सरे मुद्दे भूल के आओ ,
हम फिर टकराए जाम |

1 comment:

  1. ताना मारना हो तो यह कविता पढ़ो! वाह!

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