Saturday, February 21, 2009

बिष उगलता आया हूँ

में नदी के नीर सा,
बहता गया एक ओर
अनगिनत सपनों से होकर,
मैं बहा किस ओर |
मैं बहा किस ओर ,
मुझको क्या ख़बर है,
मंजिल की दिल में चाह,
सिने में सबर है |
उद्गम में जो उन्माद था,
कुछ थम सा गया है |
अंत का साया भी,
कुछ गहरा गया है
हर किनारे पर कई
सपने सजा कर आया हूँ,
कुछ मछलियों को नई
मंजिल दिला कर आया हूँ |
बह रहा हूँ बिन रुके,
फ़िर भी किनारे कोसते है |
सच है सायद ये भी की,
उनको जुदा कर आया हूँ |
रत्न मानिक सब मेरे,
मझधार में ही खो गए,
बस ये खर पतवार ही,
मैं संग बहा कर लाया हूँ |
अब फसल मेरे वजह से
जल रहे हैं खेत में,
हर बूंद में अपने में इतना,
बिष उगलता आया हूँ |
मैं न इतना क्रूर था
जिस पल चला था सैर पर
कौन जाने की ये दुर्गुण,
मैं कहाँ से लाया हूँ |

Friday, February 20, 2009

अच्छा लगा ...आनंद

हर गली हर मोड़ पर
जो भी मिला अच्छा लगा
बंद कलियाँ भी मिली
कोई फूल सा खिल के मिला
कुछ फूल काँटों संग मिले
कुछ फूल बिन काटों मिला
पर इस कड़कती धुप में
जो भी मिला शीतल लगा |
कुछ मिले धब्बो के संग
कुछ लोग रंगों संग मिले
पर इस मतलबी भीड़ में
जो भी मिला हंस कर मिला
कुछ यार मिलने को मिले
कोई बोझ सा तन कर मिला
पर जो भी मिला आनंद से
आनंद फ़िर खुल के मिला |||||

Monday, February 2, 2009

कुछ ऐसी ग़ज़ल बनाओ

सब भाव यहाँ मिल जाएँगे,
शब्दों के जाल बनाओ अब |
जिससे भर जाए आंखे ,
कुछ ऐसी ग़ज़ल बनाओ अब |
तेरा मेरा है अजर-अमर ,
रिस्तो के बाँध बनाओ अब |
जिससे सज जाए अम्बर,
एक ऐसा गाँव बसाओ अब |
हर दुआ असर दायक होगी,
मन्नत का दौर चलाओ अब,
जिससे भर जाए दामन ,
कुछ ऐसे ध्यान लगाओ अब |
बहुत हो चुका मार काट,
न ऐसे धर्म निभाओ अब |
इस बारूद के बिस्तर पर,
न ऐसे आग लगाओ अब |
सब भाव यहाँ मिल जाएँगे,
शब्दों के जाल बनाओ अब |
जिससे भर जाए आंखे ,
कुछ ऐसी ग़ज़ल बनाओ अब