Friday, January 8, 2010

ये गहरी खाइयाँ क्यूँ है |

ख़ुशी के समन्दर में,
ये गम के बुलबुले क्यूँ है |
अपनों के इस  भीड़ में,
हम यहाँ तन्हा क्यूँ है|


यूँ तो सूरज रोज आता है,
 मेरे दर पर हर सुबह| 
फिर भी मेरे दर पर,
 ये घोर अँधेरा क्यूँ है |


साथ चलने से यूँ  तो,
मिटा करती थी दूरियां | 
फिर ये हम दम से,
ये इतना फांसला क्यूँ है |


मिलने कि है आरजू,
कई मुद्दत से सनम |
दिलों के बिच में अब तक,
ये गहरी खाइयाँ क्यूँ है |

8 comments:

  1. अच्छी रचना , अच्छे भाव

    ReplyDelete
  2. और बेहतर कोशि‍श की जा सकती थी।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर रचना...
    दिलो के बीच जो खाइयाँ पैदा हो गई है उन्हें भरना चाहिए
    और दिलो के बीच जो दूरियां आ गई है उन्हें कम करना चाहिए
    आभार
    महेन्द्र मिश्र

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर रचना...
    दिलो के बीच जो खाइयाँ पैदा हो गई है उन्हें भरना चाहिए
    और दिलो के बीच जो दूरियां आ गई है उन्हें कम करना चाहिए
    आभार
    महेन्द्र मिश्र

    ReplyDelete
  5. अच्छी रचना , अच्छे भाव

    ReplyDelete