Wednesday, January 27, 2010

बाँट लो अपना घरौंदा




फायदा क्या साथ रहने में,
यहाँ फिर बे-सबब |
जब लगे बर्तन खनकने,
यार हो जाओ अलग |
जब सिर्फ अपनी बात ही,
सबको सही लगने लगे|
बाँट लो अपना घरौंदा,
ताकि हंस कर मिल सके |
बात एक दूजे कि जब,
कान में चुभने लगे,
मौन ब्रत धर  लो वहां,
ताकि सुकून से रह सको|
जब हुआ हर काम ,
अपना ही किया लगने लगे |
और रिश्ते खुद पर तुझको,
बोझ से लगने लगे |
जब लगे है फायदा, 
दूर रहने में तुम्हे |
तब  तोड़ दो एक घर कि ,
फिर  दो घर ख़ुशी से रह सके | 

4 comments:

  1. जब सिर्फ अपनी बात ही,
    सबको सही लगने लगे|
    बाँट लो अपना घरौंदा,
    ताकि हंस कर मिल सके |
    बिलकुल सही बात है सुन्दर रचना के लिये बधाई

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  2. baat to sahi ;ikhi hai per itni aasaan nahin

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  3. अभिव्यक्ति सुन्दर है, निःसंदेह ध्येय आपका भी शांति ही है !
    किन्तु बटना तो सरल है जोड़ना कठीन है ...

    "घर के बर्तनों की खनक पर उन्हें बाटा नहीं जाता !
    रिश्तो की नाज़ुक डोर को कटा नहीं जाता"

    क्षमा चाहूंगी पर सबकी अपनी सोच होती है....रचना सुन्दर है !

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  4. बाँट लो अपना घरौंदा,
    ताकि हंस कर मिल सके |
    बिलकुल सही बात है सुन्दर रचना के लिये बधाई

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