Sunday, March 7, 2010

हमको कोई खतरा नहीं??????

गंध बारूदों कि अब,
आने लगी हर मोड़ से |
कह रहा है हर कोई,
हमको कोई खतरा नहीं |

यहाँ धर्म भाषा जाति कि,
चिन्गारियाँ  बिखरी हुई  |
पर कह रहा है हर कोई |
मुझको कोई खतरा नहीं |

अब पडोसी तक दखल,
देता है हर एक बात में |
पर कह रहा है रहनुमा,
उनसे कोई खतरा नहीं |

है लचर अपनी व्यवस्था,
ये जानता है हर कोई  |
पर दिलासा दे रहा है,
हमको कोई खतरा नहीं |

है समय अब भी,
सुधर जाएँ अगर तो ठीक है |
बाद में कह ना सकेंगे,
हमको कोई खतरा नहीं.|

2 comments:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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