Thursday, May 20, 2010

मैं कवि बन गया ......

तुम ग़ज़ल बन के जो,
आ गयी सामने |
बस तुम्हे पढके ही,
मैं कवि बन गया |
तेरी हर इन्द्रियाँ,
यूँ थी अनुपात में |
देखते देखते ही,
नज़म गढ़ दिया |
तेरे यौवन कि मदिरा,
बही इस तरह |
घूरते-घूरते मैं,
कहीं बह गया |
होंठ से दाँत कि,
जंग को देख कर,
क्या बताऊँ तुम्हे,
मैं कहाँ खो गया |

6 comments:

  1. kahan kho gaye...
    kidhar magun ho gaye...
    yowan rash lekar
    ka mast ho gaye....

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  2. तेरे यौवन कि मदिरा,
    बही इस तरह |
    घूरते-घूरते मैं,
    कहीं बह गया

    क्या बात है वाह...बहुत खूब कहा है...
    नीरज

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  3. Awesome bhai very rare to see this kinda hindi nowdays...
    :):):)

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  4. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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