Thursday, September 30, 2010

इन्सान बाँट डाला

अब बांटने  का चस्का,
ऐसा लगा आनंद |
घर-बार बाँट  डाला,
और प्यार बाँट डाला |
जो फिर भी सुकूँ ना आया,
तो  संसार बाँट डाला  |
इधर छू कर गयी नहीं,
हवा साजिस लिए कोई |
हमने उधर तपाक से ,
जिस्म रूह बाँट  डाला |
ऊपर है जिसका राज़,
वो सायद जुदा ना हो  |
हमने जिसके नाम पर,
इन्सान बाँट डाला |

4 comments:

  1. BLOG'S APPEARANCE NEEDS TO BE IMPROVED.
    LONG PAUSE IS THE CAUSE OF STILLNESS...

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  2. जिस्म रूह बाँट डाला |
    ऊपर है जिसका राज़,
    वो सायद जुदा ना हो |
    हमने जिसके नाम पर,
    इन्सान बाँट डाला |

    वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  3. "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

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