Monday, July 19, 2010

हंस बनना चाहता हूँ |

खुद को रंग चुने में मैं भी,
हंस बनना चाहता हूँ |
हाँथ में जो बंध ना पाए,
 वों रेत बनना चाहता हूँ |
रोज़ सपनों में जिसे मैं, 
देखता हूँ,  रात  भर,
बस उसी सपने को मैं,
अंजाम देना चाहता हूँ |
माना कि मुझसे खफा,
होकर के बैठी है  कही,
बस आज उस तक़दीर का,
मैं साथ देना चाहता हूँ |
नाम तेरा मैं भी लिख सकता था,
दीवारों पर मगर,
मैं तुम्हे गंगा के जैसा,
साफ रखना चाहता हूँ |
नाम जुड़कर के मेरा,
बदनाम ना कर दे तुम्हे,
बस इसी डर से, 
मैं तुझसे दूर रहना चाहता  हूँ |
ना नींद में यादें मेरी,
फिर आ के झकझोरे तुम्हे,
इसलिए यादों में खुद ही,
दफन  होना चाहता हूँ |
फिर इकिंचित नाम सुनकर के मेरा,
 तुम्हे दर्द ना हो,
खुद को रंग चूने में मैं भी,
हंस बनना चाहता हूँ |

Sunday, July 11, 2010

आखिरी राह

जो आज मेरा है,
कल किसी और का होगा,
इस बाज़ार में कुछ,
 बे वज़ह नहीं होता  |
जुड़ें है लोग यहाँ ,
अपने किसी मकसद से,
बिना मतलब के कोई, 
साथ अब  नहीं देता |
वों वक्त और था,
जब खून बहा देतें थे,
अब बिना स्वार्थ
कोई हाँथ भी नहीं देता |
हर कोई बाटना चाहेगा,
ख़ुशी तेरे संग,
तेरा गम बांटने को, 
कोई भी नहीं होगा |
जब तक जिंदा हो,
ये बोझ उठा कर चल लो,
आखिरी राह में कोई
हम सफ़र नहीं मिलता |
यहाँ आनंद सबको,
फिक्र है बस अपनों कि
बे वजह बात,
ज़माने कि वों नहीं करता |