Sunday, August 12, 2012

बचपन Part1

बड़े सपनों की जब औकात थी,
गुल्लख से नपने की,
सुनाऊंगा तुम्हे मैं बात,
कुछ अपने ही बचपन की |

जब सिक्का एक का,

पड़ता था दस के नोट पर भारी |
खनक गुल्लख की लाती थी,जब एक मुस्कान फिर प्यारी |......... 

धनुष ले  हाँथ में,
एक पल में यारों राम बन जातें |
कभी घुटनों पर जा बैठें,
और हम रहमान बन जातें |


धर्म और जात का अंतर,
जब हमको पता ना था |
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा भी,
सब एक  जैसा ही  था |


कई किरदार थे अन्दर,
जो बहार आ ही जाते थे |
कभी चड्ढी पहन के मोगली,
कभी घुमे गोल और शक्तिमान बन जातें |


घूम्चियों के बीज जब.
मोती से सुन्दर थे |
बड़े ही चाव से हम,
फिर घुम्चियाँ धागों में बुनते थे |


मिटटी खोद कर जब, 

केचुए, हांथों से चुनते थे |
चारा मिल गया ये सोचकर,
दिल खोल हँसते थे |

कांटा चार आने का,

फंसाकर अपनी  बंसी में |
निकल  पडतें थे नंगे पांव,
घर में शार्क लेन को ||| 

जारी..

3 comments:

  1. मिटटी खोद कर जब,
    केचुए, हांथों से चुनते थे |
    चारा मिल गया ये सोचकर,
    दिल खोल हँसते थे
    ...........सच कहा है खूबसूरत शब्द भाव

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