Saturday, August 17, 2013

क्यूँ गरल, सरल हो कर बैठा,

क्यूँ गरल, सरल हो कर बैठा,
क्यूँ अमृत जल सा बह बैठा ।
क्यूँ नदियाँ सीमा लाँघ गयी,
क्यूँ सागर सहज सरल बैठा ।। 

क्यूँ हिम, बेबस से  पिघल रहे,
क्यूँ यहाँ वहां चट्टान गीरा ।
क्या वजह, हिमालय घायल है,
क्यूँ पूरा हिंदोस्तान हिल़ा ।।

क्यूँ बंटी  हुई आजादी है,
क्यूँ हर षड़यंत्र में खादी है ।

क्यूँ जख्मी भारत की सीमा,
किसने कर दिया छ्लनी सीना ।। 
क्यों हार मान सब बैठ गएँ ,
जब चार दिनों का है जीना ।।

यूँ  हम  सब मिल संघर्ष करें,
कि पूरी दुनियाँ  ही हर्ष करे ।
भारत का भाल चमक जाए,
कुछ ऐसा अनुपम कर्म करें ॥

क्यूँ बैठे सब  विपरीत यहाँ ,
क्यूँ ऐठे सब फिर यहाँ वहाँ । 
जीवन गर एक समर्पण है,
तो खोना क्या, और पाना क्या ।। 

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