Friday, January 4, 2013

दीपक जलना चाहता हूँ ।

सूर्य को आकाश से,  
पृथ्वी पर लाना चाहता हूँ ।
मैं धरा से तम का सारा, 
भय मिटाना चाहता हूँ ।।

मैं चाहता हूँ मुक्त हो,
अब रोशनी की हर किरण ।
बस इसलिए  तूफान में,
दीपक जलाना चाहता हूँ ।

लकड़ियाँ गीली हैं सत्ता की,
ये मैं भी जनता हूँ ।
सो जिद्द की खुरचन से, 
झूठ का, महल जलाना चाहता हूँ ।

जानता हूँ, वो निघर्घट,
बेशरम है रहनुमा पर ।
मैं जिद्द के ढेले से किले को,
ध्वस्त करना चाहता हूँ ।

मैं चाहता हूँ मुक्त हो,
अब रोशनी की हर किरण ।
बस इसलिए  तूफान में,
दीपक जलना चाहता हूँ ।