Friday, May 1, 2015

थोड़ा वक़्त तो लगता है ।

हवा सदा अनुकूल चले, बस ऐसा कम ही होता है,
अनचाहा परिवर्तन अक्सर , थोड़ा दर्द तो देता है। 
थको नहीं तुम, बढ़ो निरंतर, अपनी मंजिल पाने को,
पतझड़ से कोंपल आने तक, थोड़ा वक़्त तो लगता है । 

चाल समय की  सदा सर्वदा, परिवर्तित हो जाती है,
ज्वलन सुबह के बाद सही, एक निर्मल रात भी आती है। 
सतत परिश्रम करते जाओ, बढ़ते जाओ मंज़िल तक,
फिर थक कर, बेसुध गिरने से, थोड़ा आराम तो मिलता है ।