Wednesday, June 24, 2015

मैं कस्तूरी ढूंढ़ रहा हूँ..

ढूंढ रहा हूँ व्याकुल होकर,
कुछ तो खाली खाली सा है।
पता नहीं क्यों लगे अधूरा,
क्यूँ मन बिन पानी, मछली सा है ।

चाह नहीं अम्बर छूने की,
ना धरती पर, पग धरने की।
ना कोई ख्वाहिस् जीने की,
और ना ही इच्छा मरने की ।

ना मैं योगी, ना मैं भोगी,
न जाने किस ओर चला हूँ ।
आनंद हूँ, आनंद पाने को,
मृग बन, कस्तूरी ढूंढ़ रहा हूँ