Monday, August 21, 2017

क्या बदला है ?

उँगलियों पर गिन लो, बस इतने ईमानदार बैठें हैं |
मौका नहीं मिला है उन्हें, वो अब भी ताक में बैठे हैं ||

जो परिंदो को रोज, चारा डालते दिखाई देतें हैं |
जरा संभलना कि वो, एक मौके के इंतजार में बैठें हैं ||

इतने सालों में बस इतना ही बदला है आनंद  |
जो कल तक चोर थें, वो ही  कोतवाल बने बैठे है ||

Friday, August 11, 2017

परिवर्तन

जीत में उन्माद है तो,
हार में अवसाद होगा।
इस धरा पर, मित्र मेरे,
कुछ भी स्थायी नही है ।।

कुछ पाने पर, गर जस्न है,
तो खोने का भी शोक होगा ।
कोई भी व्यवहार आनंद,
फिर चीर-स्थायी नही है ।।