Tuesday, October 31, 2017

तन का आकर्षण !

तन का आकर्षण है जब तक,
मन का मान किसे रहता है ।
पाप पुण्य का ध्यान किसे फिर,
कहाँ कोई निश्छल रहता है ।

अपने को तज, ग़ैर की चिंता,
दिल तेरा अक्सर करता है,
क्षण-भंगुर यौवन का पीछा,
क्यूँ ये व्याकुल मन करता है ।


Monday, October 16, 2017

जीवन साथी...

जैसे जैसे दिन एक बीता,
तुम वैसे वैसे निखरी हो ।
एक जन्म का साथ नही,
तुम जैसे, जन्मों से मेरी हो ।

तुम अपना अस्तित्व मिटा के,
मेरा शुख़ दुःख बाँट रही हो ।
मेरे हिस्से के काँटे भी,
तुम आँचल से ढाँक रही हो ।

अपने घर को छोड़ के जबसे,
तुम मेरे घर आयी हो ।
उस दिन से तुम अपनी ख़ुशियाँ,
मेरे घर ही बाँट रही हो ।

है अपनी चिन्ता कहाँ तुम्हें ,
बस अपनो की चिंता करती हो।
जिसको बरसों ढूँढ रहा था ,
तुम बिलकुल वो ही लड़की हो ।

Wednesday, October 11, 2017

पूराने ख़्वाब को, फेकूँ मैं कहाँ ?


तेरी हर बात तो, हर बार बदल जाती है,
मैं तेरे बात पर, कैसे यक़ीं करूँ ये बता ।।

फिर एक बार नए ख़्वाब, लेके आए हो,
पूराने ख़्वाब को, फेकूँ मैं कहाँ ये तो बता ।।

तेरे वादे अभी भी दफ़्न हैं, तकिए के तले,
मैं राज खोल दूँ, तुझको हो कोई डर तो बता ।।

मेरी आवाज़ को, तेरा शोर दबा दे शायद,
तू थोड़ा सब्र से, मेरी बात सुन सके तो बता ।।

मैं जानता हूँ, शहर भर में है बस तेरे चर्चे,
तू सबसे ऊब कर, एकांत में चल ले तो बता ।।


जाने क्यूँ अच्चा लगा

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

धुल धक्कड़ से निकलता था, हमेशा बच  बचाके ,
आज कीचड़ में लिपट कर जाने क्यों अच्छा लगा ।

झूठ के पिंजरे में , बैठा था मैं अब तक छुप छुपा के ,
आज सच के आसमां में, फिर तैरना अच्छा लगा ।

थक चूका था, स्वान रच रच कर, नए चेहरे लगा कर,
आज माँ से, फिर लिपट कर, जाने क्यों अच्छा लगा ।

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

Friday, October 6, 2017

क्यूँ फिर रहा है ठगा-ठगा सा ..

किसी की बातों पे रंज क्यूँ है,
किसी के करतब से क्यूँ हतासा ।
करम सभी के हैं उसके आगे,
काल का पहिया यही बताता ।।

जो घाव देके उछल रहे हैं ,
उनका भी कल बने तमाशा ।
सही ग़लत में फँसा ही क्यूँ है,
क्यूँ फिर रहा है ठगा-ठगा सा ।।