Monday, October 16, 2017

जीवन साथी...

जैसे जैसे दिन एक बीता,
तुम वैसे वैसे निखरी हो ।
एक जन्म का साथ नही,
तुम जैसे, जन्मों से मेरी हो ।

तुम अपना अस्तित्व मिटा के,
मेरा शुख़ दुःख बाँट रही हो ।
मेरे हिस्से के काँटे भी,
तुम आँचल से ढाँक रही हो ।

अपने घर को छोड़ के जबसे,
तुम मेरे घर आयी हो ।
उस दिन से तुम अपनी ख़ुशियाँ,
मेरे घर ही बाँट रही हो ।

है अपनी चिन्ता कहाँ तुम्हें ,
बस अपनो की चिंता करती हो।
जिसको बरसों ढूँढ रहा था ,
तुम बिलकुल वो ही लड़की हो ।

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