तन का आकर्षण है जब तक,
मन का मान किसे रहता है ।
पाप पुण्य का ध्यान किसे फिर,
कहाँ कोई निश्छल रहता है ।
अपने को तज, ग़ैर की चिंता,
दिल तेरा अक्सर करता है,
क्षण-भंगुर यौवन का पीछा,
क्यूँ ये व्याकुल मन करता है ।
मन का मान किसे रहता है ।
पाप पुण्य का ध्यान किसे फिर,
कहाँ कोई निश्छल रहता है ।
अपने को तज, ग़ैर की चिंता,
दिल तेरा अक्सर करता है,
क्षण-भंगुर यौवन का पीछा,
क्यूँ ये व्याकुल मन करता है ।
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