Thursday, December 7, 2017

ख़ून बहाने निकलें हैं ।

जिसने सारा संसार रचा,
कुछ उसे बचाने निकलें है।
साफ़ हवा में, बारूदों की,
गंध मिलाने निकलें है ।

धर्म क़ौम के नाम पे कुछ,
फिर शीश कटाने निकले है।
अपनी सनक मिटाने को,
कुछ ख़ून बहाने निकलें है ।

नाम हमारा लेकर कुछ,
मनमानी करने निकलें है।
राजनीति सध सके स्वतः,
सो जग भरमाने निकलें हैं ।

जिसने सारा संसार रचा,
कुछ उसे बचाने निकलें है।
साफ़ हवा में, बारूदों की,
गंध मिलाने निकलें है ।

No comments:

Post a Comment