Monday, December 11, 2017

ईमान बचाना भारी था।

जब दो संस्थान किसी कारण से आपस में साँझेदारी करें और कोई एक संस्थान का पूर्ण विलय हो जाए, तब अगर दोनों संसथान एक साथ, एक छत के नीचे, काम करने के लिए प्रेरित हों, उस समय पुरुष कर्मियों के दिल में क्या क्या हरकत होती है, उसकी एक बानगी 😊😊....

ऐसा नही की लल्ला, हर एक तीर तुम्हीं ने झेलें हैं ।
जब से आए हैं इस दर, हम भी मौजों से खेले हैं ।।

जब से महफ़िल छोड़ के हम, इस वीराने में आए है ।
कैसे तुम्हें बतायें कि, हम क्या क्या सहते आएँ हैं ।।

इतने जलवे देखें हमने, दिल जान बचाना भारी था ।
लटके झटके झेल झेल, ईमान बचाना भारी था  ।।

कुछ बल खा के, दिल लूट गयीं, कुछ क़ातिल नैना मार गयीं ।
कुछ घुंघराले लट वाली दिल में, सीधे छुरा मार गयीं ।।

विगत वर्ष कुछ इसी समय, जब यौवन, घट से छलका था।
ऐसा समय भी आया था, जब संस्कार संकट में था ।।

कैसे तुम्हें बताऊँ कितना, दर्द मिला था जीने में ।
कई ख़्वाब आँखों से होकर, दफ़्न हुए थें सिने में ।।

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