Tuesday, January 3, 2017

मैं राम नहीं ...

मैं राम नहीं, न सही, लेकिन,
तुम जाने क्यूँ सीता लगती हो ।
तुम भाँग के गोले जैसी हो,
समय के संग ज्यादा चढ़ती हो ।

वैसे तो आनंद देखेँ है,
कई उर्वशी, रंभा तक भी ।
पर जाने क्या खूबी है तुममे,
बस तुम ही, मुझको जंचती हो।

उद्देश्य है क्या ?

सोच समझ, करे बस प्रपंच,
बस सोचूं, कुछ कर पाऊँ ना । 
जानू अंतर, क्या पाप पुण्य
फिर भी  खुद को समझाऊं ना ।। 

काम क्रोध, मद लोभ, शत्रु हैं,
ये मुझे पता है बचपन से । 
करके देखें लाख जतन,
पर विजय न पाया इस मन पे ।। 

इच्छा है सब कुछ पाने की,
हर दिल में बस छा जाने की । 
पर राह कौन सी चुनु यहाँ,
जिसमे क्षमता बढ़ते जाने की  ॥

क्यों हुआ जन्म इस धरती पर,
ना जानू  मैं उद्देश्य है क्या । 
बस भटक रहा हूँ, आस लिए,
मंजिल तक एक दिन पहुँचूँगा ।।