Wednesday, October 11, 2017

जाने क्यूँ अच्चा लगा

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

धुल धक्कड़ से निकलता था, हमेशा बच  बचाके ,
आज कीचड़ में लिपट कर जाने क्यों अच्छा लगा ।

झूठ के पिंजरे में , बैठा था मैं अब तक छुप छुपा के ,
आज सच के आसमां में, फिर तैरना अच्छा लगा ।

थक चूका था, स्वान रच रच कर, नए चेहरे लगा कर,
आज माँ से, फिर लिपट कर, जाने क्यों अच्छा लगा ।

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

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