Monday, December 11, 2017

ईमान बचाना भारी था।

जब दो संस्थान किसी कारण से आपस में साँझेदारी करें और कोई एक संस्थान का पूर्ण विलय हो जाए, तब अगर दोनों संसथान एक साथ, एक छत के नीचे, काम करने के लिए प्रेरित हों, उस समय पुरुष कर्मियों के दिल में क्या क्या हरकत होती है, उसकी एक बानगी 😊😊....

ऐसा नही की लल्ला, हर एक तीर तुम्हीं ने झेलें हैं ।
जब से आए हैं इस दर, हम भी मौजों से खेले हैं ।।

जब से महफ़िल छोड़ के हम, इस वीराने में आए है ।
कैसे तुम्हें बतायें कि, हम क्या क्या सहते आएँ हैं ।।

इतने जलवे देखें हमने, दिल जान बचाना भारी था ।
लटके झटके झेल झेल, ईमान बचाना भारी था  ।।

कुछ बल खा के, दिल लूट गयीं, कुछ क़ातिल नैना मार गयीं ।
कुछ घुंघराले लट वाली दिल में, सीधे छुरा मार गयीं ।।

विगत वर्ष कुछ इसी समय, जब यौवन, घट से छलका था।
ऐसा समय भी आया था, जब संस्कार संकट में था ।।

कैसे तुम्हें बताऊँ कितना, दर्द मिला था जीने में ।
कई ख़्वाब आँखों से होकर, दफ़्न हुए थें सिने में ।।

Thursday, December 7, 2017

ख़ून बहाने निकलें हैं ।

जिसने सारा संसार रचा,
कुछ उसे बचाने निकलें है।
साफ़ हवा में, बारूदों की,
गंध मिलाने निकलें है ।

धर्म क़ौम के नाम पे कुछ,
फिर शीश कटाने निकले है।
अपनी सनक मिटाने को,
कुछ ख़ून बहाने निकलें है ।

नाम हमारा लेकर कुछ,
मनमानी करने निकलें है।
राजनीति सध सके स्वतः,
सो जग भरमाने निकलें हैं ।

जिसने सारा संसार रचा,
कुछ उसे बचाने निकलें है।
साफ़ हवा में, बारूदों की,
गंध मिलाने निकलें है ।

Tuesday, October 31, 2017

तन का आकर्षण !

तन का आकर्षण है जब तक,
मन का मान किसे रहता है ।
पाप पुण्य का ध्यान किसे फिर,
कहाँ कोई निश्छल रहता है ।

अपने को तज, ग़ैर की चिंता,
दिल तेरा अक्सर करता है,
क्षण-भंगुर यौवन का पीछा,
क्यूँ ये व्याकुल मन करता है ।


Monday, October 16, 2017

जीवन साथी...

जैसे जैसे दिन एक बीता,
तुम वैसे वैसे निखरी हो ।
एक जन्म का साथ नही,
तुम जैसे, जन्मों से मेरी हो ।

तुम अपना अस्तित्व मिटा के,
मेरा शुख़ दुःख बाँट रही हो ।
मेरे हिस्से के काँटे भी,
तुम आँचल से ढाँक रही हो ।

अपने घर को छोड़ के जबसे,
तुम मेरे घर आयी हो ।
उस दिन से तुम अपनी ख़ुशियाँ,
मेरे घर ही बाँट रही हो ।

है अपनी चिन्ता कहाँ तुम्हें ,
बस अपनो की चिंता करती हो।
जिसको बरसों ढूँढ रहा था ,
तुम बिलकुल वो ही लड़की हो ।

Wednesday, October 11, 2017

पूराने ख़्वाब को, फेकूँ मैं कहाँ ?


तेरी हर बात तो, हर बार बदल जाती है,
मैं तेरे बात पर, कैसे यक़ीं करूँ ये बता ।।

फिर एक बार नए ख़्वाब, लेके आए हो,
पूराने ख़्वाब को, फेकूँ मैं कहाँ ये तो बता ।।

तेरे वादे अभी भी दफ़्न हैं, तकिए के तले,
मैं राज खोल दूँ, तुझको हो कोई डर तो बता ।।

मेरी आवाज़ को, तेरा शोर दबा दे शायद,
तू थोड़ा सब्र से, मेरी बात सुन सके तो बता ।।

मैं जानता हूँ, शहर भर में है बस तेरे चर्चे,
तू सबसे ऊब कर, एकांत में चल ले तो बता ।।


जाने क्यूँ अच्चा लगा

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

धुल धक्कड़ से निकलता था, हमेशा बच  बचाके ,
आज कीचड़ में लिपट कर जाने क्यों अच्छा लगा ।

झूठ के पिंजरे में , बैठा था मैं अब तक छुप छुपा के ,
आज सच के आसमां में, फिर तैरना अच्छा लगा ।

थक चूका था, स्वान रच रच कर, नए चेहरे लगा कर,
आज माँ से, फिर लिपट कर, जाने क्यों अच्छा लगा ।

थक चुका था साफ़ सुथरे रास्तों पर चलते चलते,
तंग गलियों से गुजर कर घूमना अच्छा लगा।

Friday, October 6, 2017

क्यूँ फिर रहा है ठगा-ठगा सा ..

किसी की बातों पे रंज क्यूँ है,
किसी के करतब से क्यूँ हतासा ।
करम सभी के हैं उसके आगे,
काल का पहिया यही बताता ।।

जो घाव देके उछल रहे हैं ,
उनका भी कल बने तमाशा ।
सही ग़लत में फँसा ही क्यूँ है,
क्यूँ फिर रहा है ठगा-ठगा सा ।।

Monday, August 21, 2017

क्या बदला है ?

उँगलियों पर गिन लो, बस इतने ईमानदार बैठें हैं |
मौका नहीं मिला है उन्हें, वो अब भी ताक में बैठे हैं ||

जो परिंदो को रोज, चारा डालते दिखाई देतें हैं |
जरा संभलना कि वो, एक मौके के इंतजार में बैठें हैं ||

इतने सालों में बस इतना ही बदला है आनंद  |
जो कल तक चोर थें, वो ही  कोतवाल बने बैठे है ||

Friday, August 11, 2017

परिवर्तन

जीत में उन्माद है तो,
हार में अवसाद होगा।
इस धरा पर, मित्र मेरे,
कुछ भी स्थायी नही है ।।

कुछ पाने पर, गर जस्न है,
तो खोने का भी शोक होगा ।
कोई भी व्यवहार आनंद,
फिर चीर-स्थायी नही है ।।

Friday, July 7, 2017

झील सी आँखे

थीं कुछ की आँखे झील,
तो कुछ रूप रंग में आगे थीं |
थें कुछ कातिल नयन नक्स,
कुछ हिरनी सी बाल खातीं थी ।
कुछ के दांतो के कायल थे,
कुछ के बालों पर मरतें थें
कैसे बयाँ करें तुमसे ,
हम किस चेहरे पर मरतेँ थे ।😄




Friday, March 3, 2017

एक पिता है वो

जो भूल कर, खुलकर कभी भी नहीं हँसता,
वो डरता है, बच्चे भटक जाएँ नहीं  रस्ता ।
जो माँ से मिलकर, प्यार अपना भी लूटाता,
वो बाप है, ख़ुद को लुटा के घर बनाता है ।

दुख का हर तूफ़ान, ख़ुद पर झेलता है जो,
मुश्किलों के साथ, हरदम खेलता है वो ।
दर्द सब सहकर, हमेशा मुस्कुरा ले जो ।
कुछ ना पूछो, जान लो कि एक पिता है वो !

Tuesday, January 3, 2017

मैं राम नहीं ...

मैं राम नहीं, न सही, लेकिन,
तुम जाने क्यूँ सीता लगती हो ।
तुम भाँग के गोले जैसी हो,
समय के संग ज्यादा चढ़ती हो ।

वैसे तो आनंद देखेँ है,
कई उर्वशी, रंभा तक भी ।
पर जाने क्या खूबी है तुममे,
बस तुम ही, मुझको जंचती हो।

उद्देश्य है क्या ?

सोच समझ, करे बस प्रपंच,
बस सोचूं, कुछ कर पाऊँ ना । 
जानू अंतर, क्या पाप पुण्य
फिर भी  खुद को समझाऊं ना ।। 

काम क्रोध, मद लोभ, शत्रु हैं,
ये मुझे पता है बचपन से । 
करके देखें लाख जतन,
पर विजय न पाया इस मन पे ।। 

इच्छा है सब कुछ पाने की,
हर दिल में बस छा जाने की । 
पर राह कौन सी चुनु यहाँ,
जिसमे क्षमता बढ़ते जाने की  ॥

क्यों हुआ जन्म इस धरती पर,
ना जानू  मैं उद्देश्य है क्या । 
बस भटक रहा हूँ, आस लिए,
मंजिल तक एक दिन पहुँचूँगा ।।