Thursday, December 25, 2008

नखरे पड़ोसन के.||||........||||

यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||

है ढीला- ढाला नेबर मेरा , पर यार पड़ोसन टाईट है |
जितने मे मेरा ब्रेकफास्ट, उतनी जानम की डाएट है ||

मैं अमजद जी सा टाईट, वो यार तनुश्री दिखती है |
यार खड़ी जब बालकोनी मे, तिरछी नज़रों से तकती है ||

था यार अटल सा सुस्त कभी,अब लालू जैसा दिखता हूँ |
वो यार दूधारू भैंस मेरी, और मैं बाल्टी जैसा तकता हूँ ||

दिल में कुछ-कुछ होता है, जब उसको देखा करता हूँ |
नखरे सब सहता हूँ उसके, और लव-यू लव-यू कहता हूँ ||

सायद ये मेरे ख्वाब कभी, झटके से सच हो जाएँगे |
जब यार पड़ोसन के बच्चे, मुझे अब्बा कहकर बुलाएँगे ||

यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||

बीते बातों की चादर....

बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||

कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||

यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||

कैसा दिखता था तब मै, ये खुद से पूछा करता हूँ |
उसके कदमो के आहट से,मैं अब भी चौंका करता हूँ ||

चुप रह कर भी वो उसका, सारी बातें कह जाना |
वो उसका झुक कर चलना, फिर धीरे से मुस्काना ||

वो चादर जितनी लम्बी है, यादे उतनी ही गहरी है |
आसान है इसमे खोना पर, मुस्किल है बाहर आना ||

बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||

Sunday, November 30, 2008

बाँध सबर का टूट ना जाए (पाक की औकात )

जब ख़ौफ़ नही है मरने का, फिर मुद्दा क्या है डरने का |
सब एक साथ ही आ जाओ, यूँ लूक्का-छिप्पि करना क्या ||

यूँ बारी-बारी तड़प-तड़प, कापुरुषों सा अब जीना क्या |
नापाक इरादों के गिरगिट, यूँ रंग बदल अब जीना क्या ||

है जिस्म हमारा भारत से, फिर भारत मे मिल जाएगा |
पर जब ठनका माथा अपना, तू भाग कहाँ फिर जाएगा ||

हम तो बारुदों पर चल कर, यहाँ इस मुकाम पर आए है |
इतनी तेरी औकात ना थी , हम जितना सहते आये है ||

ये ताज नही है फूलों का , जब चाहा इसे पहन लोगे |
गर हुई हिमाकत फिर ऐसी, लाहौर भी तुम तब खो दोगे ||

बाँध सबर का टूट ना जाए, ये दुआ करो अपने रब से |
खोज ना पाओगे खुद को , जब भूले से भी हम सनके ||

भीख के धन पर ऐश करो, ना ऐसे व्यर्थ गावओ तुम |
छोड़ो चिंता अब धर्म-क़ौम की, खुद का घर बनवओ तुम ||

करने को पूरा पाक ध्वस्त, यहाँ एक जवान ही काफ़ी है |
यहाँ करने से पहले कुछ भी, सौ बार सोचकर आना तुम ||

यहाँ लुक-छिप गोलाबारी कर, तुम हमे हिला ना पाओगे |
हमे मिटाने की चाहत मे, खुद मिट्टी मे मिल जाओगे ||

है जिस्म हमारा भारत से, फिर भारत मे मिल जाएगा |
पर जब ठनका माथा अपना, तू भाग कहाँ फिर जाएगा ||

Tuesday, November 25, 2008

सूखे शब्दकोष

भाव भुला कहीं, रस का अभाव सा,
खो गये रंग भी, और अलंकार भी |
सोच कुंठित हुई, शब्द भी खो गये,
पात्र झूठे लगे, ज़िंदगी के मुझे ,
ज़िंदगी भी मुझे आज झूठी लगी |
शब्द सागर मे एक बूँद बाकी नही,
भाव सागर भी मुझको यू खाली मिली |
जब भी चाहा की कुछ मै नया सा लिखूं,
मुझको हर मोड़ पर फिर उदासी मिली |
सूत्रो मे मैं बँधा ही रहा हर घड़ी,
सोच को भी जहाँ कुछ आज़ादी ना थी |
था मात्रा की गड़ना से आज़ाद मै,
चार चरणो से खुद को बचा ना सका |
भाव भुला कहीं, रस का अभाव सा |
खो गये रंग भी, और अलंकार भी |

Friday, November 14, 2008

उपहार !!

लंबा है पथ, खुली सड़्क है,
अपनो का अंबार सज़ा है |
जब तक कुछ दे सकते हो,
बस तब तक संसार खड़ा है |

जब चाहोगे प्यार मिलेगा,
खुशियो का संसार मिलेगा |
जब तक मुठ्ठी बँधी हुई है ,
बस तब तक सम्मान मिलेगा |

इस भीड़- भाड़ की दुनियाँ मे,
अब तुझको भी स्थान मिलेगा |
भरा हुआ है गला जभि तक,
बस तब तक ही दान मिलेगा |

हर शुख सुविधा द्वार खड़ी है,
अब तुझको गले लगाने को |
है जब तक गिरवी रखने को,
बस तब तक उपहार मिलेगा |

पूजा भी फलदायक होगी,
"आनंद" भी वरदान मिलेगा |
जब तक त्याग करोगे तुम,
बस तब तक परिवार मिलेगा |

कुछ देने का प्रण कर लो,
तो तुझको भी संसार मिलेगा |
साथ रहे जो हर शुख दुख मे,
अब ढूँढे से वो यार मिलेगा |

लंबा है पथ, खुली सड़्क है,
अपनो का अंबार सज़ा है |
जब तक कुछ दे सकते हो,
बस तब तक संसार खड़ा है |

Saturday, October 25, 2008

मने ऐसी दिवाली अब !!!



हो सारी बात शुखदायी,
जो बीते ज़िंदगी मे अब |
जलाओ अब दिए ऐसे,
जगमग हो यहाँ हर कण |

ना कोई यार गुम-सूम हो
ना कोई यार हो चुप-चुप |
खुले अब गाँठ सब दिल के,
मने ऐसी दिवाली अब |

ना कोई यार हो भूखा,
ना कोई घर अंधेरा हो |
मिले ऐसे गले अब कि,
फिर रातों मे सबेरा हो |

इस प्यार के बाज़ार मे,
अब मंदी ना हो कोई |
मुनाफ़ा हर जगह फैले,
मने ऐसी दिवाली अब |


आप सभी को मेरी तरफ से हार्दिक शुभ कामनए!!

Tuesday, October 21, 2008

" ऊर्जा "आज का युवा और गिरती राजनीति


ऊर्जा हमी मे है कि हम, ब्राम्‍हांड का निर्माण कर दें |
और जब भटके कभी तो, विश्‍व का निर्वाण कर दें |

चाहे तो हमे कर नियंत्रित, उर्जा का भंडार कर लो |
या तो घट जाए ग़लत कुछ, इससे पहले ही निकल लो |

हम भी काँटों से बने है, ना समझ हमे फूल रौंदो |
नासूर बन जाए यहाँ ,तुम इससे पहले ही सुधर लो |

छोटे से ढेले है, ना मसलो , चूर हम हो जाएँगे |
पर उड़ के आँखो मे गये तो, आँख ही ले जाएँगे |

बन के तमासाई ,ना अब तमाशा यार देखो |
गर मदारी हम बने, बंदर हमारे यार तुम हो |

है अनियंत्रित कण, हम जब निकले तो टकराएँगे |
अपनी तो हस्ती नही कुछ,तुझको मिटा कर जाएँगे |

रोक लो आँधी, और बहने दो हवा कुछ मंद |
खुशबू हो चारो तरफ, और फैला हो आनंद |

Friday, October 17, 2008

१२०२७ रन बनाने के लिए सचिन "रिकॉर्ड " तेंदुलकर को हार्दिक बधाई !!!!




मुस्किलों से ही सही,
टूटा है फिर एक आसमाँ |
और विश्‍व के पृष्ट पर,
चमका है फिर ये हिंदोस्ता |

गर्व हमको है यहाँ ,
अब जन्म लेने के लिए |
जन्म लेते हो जहाँ ,
सदियों मे ऐसे सूरमा |

टूटते बनते रहेंगे ,
यार ऐसे कीर्तिमान |
पर नही आएगा अब,
तेंदुलकर सा सूरमा |

Thursday, October 9, 2008

मैं बचपन मे कितना सच्चा था |





यूँ घुट घुट कर जीने से,
मेरा मर जाना अच्च्छा था |

क्यूँ पंख कतर कर छोड़ दिया,
इससे अच्छा वो पिंजरा था |

छलक रहा हूँ इधर उधर,
इससे अच्छा मै सूखा था |

यों कमर पर चढ़ इतराने से,
मैं कच्चा घट ही अच्छा था |

जल मग्न हुई इस दुनिया मे,
मेरा सुखापन अच्छा था. |

मरु बनकर उड़ता मरूभूमि मे,
मै खो जाता तो अच्छा था |

अर्ध नग्न हुई इस दुनियाँ मे,
मै पूरा नंगा ही अच्छा था |

यौवन के ज्वलन उजाले से
मेरा अंधेरा बचपन अच्छा था |

मुझे याद हैं वो बातें सारी
मैं बचपन मे कितना सच्चा था |

Wednesday, October 8, 2008

नीरज: चाँद की बातें करो

नीरज: चाँद की बातें करो

हाथ रख लो दी पर, कोई रास्ता बन जाएगा |
तुम चलोगे साथ तेरे कारवाँ बन जाएगा |

Tuesday, October 7, 2008

सब भाव कहीं पर छूट गये |


सुख गयी स्याही सारी,
कागज के पन्ने भींग गये |
जब दिल ने चाहा लिखना,
सब भाव कहीं पर छूट गये |

सोचा छन्दो का बंधन हो,
दोहों का भी अभिनंदन हो |
पर मेरे रचनाओं से,
रस, अलंकार तक रूठ गये |

अब रिस्तो की गाँठो मे भी,
पहले जैसा भाव नही,
मुझको गले लगाने को,
अब कोई भी तैयार नही |

है हर शब्दों मे व्यंग भरा,
अब जो मुझसे टकराती है |
बात करू किससे दिल की,
जब अपने ही कतराते हैं |


सुख गयी स्याही सारी,
कागज के पन्ने भींग गये |
जब दिल ने चाहा लिखना,
सब भाव कहीं पर छूट गये |

Tuesday, September 30, 2008

राम राज का स्वप्न

है राजनीति का जो स्तर,फिर एकदिन ऐसा आएगा |
दौलत के बिस्तर के उपर, बिकता पकड़ा जाएगा |

राज उसी का चला करेगा, जिसके हांत मे लट्ठ होगा |
अब जो सच का साथी होगा, वो पीटता पाया जाएगा |

जिसके हांतो सत्ता होगी, फिर सबको वही सताएगा,
और पाँच वर्ष का प्रेम भाव, दंगो से तोड़ा जाएगा |

काम उसीका हुआ करेगा, जो कुछ भेंट चढ़ाएगा |
उसका होगा अल्ला मालिक वो रूल नियम मे जाएगा |

रंग तिरंगे का अब जब, मज़हब मे बँट जाएगा |
केसरिया मे हिंदू होगा, हरे मे मुल्ला आएगा |

जिसके तन पर होगा सफेद, वो भ्रस्टाचार बढ़ाएगा |
और अशोक का चक्र यहाँ, षडयंत्रों से घिर जाएगा |

जो होगा मुखिया अपना, उसे चाभी से चलना होगा |
लघु शंका जाने से पहले, उसे सबका मत लेना होगा |

अब आरच्छन का दानव, हर मानव पर हावी होगा |
जाति पाती का फ़र्क यहाँ, अब जनमत पर भारी होगा |

अब जनता का राज कोष, प्रतिनिधियों पर खाली होगा |
सत्य अहिंसा का प्रतिक, अब भारत मे गाली होगा |

राम राज का स्वप्न यहाँ अब हर चुनाव दिखलाएगा |
जो राम बनेगा इस चुनाव मे, पाँच साल तक खाएगा |

राम ईसा रहमान यहाँ , अब यार चुनावी मुद्दे होंगे |
शांति दूतो के नाम पर अब, हर रोज यहाँ दंगे होंगे |

शायद कहने से आनंद के, फ़र्क यहाँ कुछ पड़ पाता |
तो खुद से आँख मिलाने मे,अपना भारत ना शरमाता |

भारत मय करना होगा



हो हर लभ पर अपना नाम ,
अब कुछ ऐसा करना होगा |
अगर चाहिए नाम जहाँ मे,
कुछ हट कर करना होगा |

ख्वाब अगर उँचा है फिर तो,
कदम बढ़ा चलना होगा |
और विश्व के मानचित्र को ,
भारत मय करना होगा |

सत्य अहिंसा के प्रतीक को,
अब संशोधित करना होगा |
गर आँख उठे हम पर कोई,
उसे भाव शुन्य करना होगा |

ईंट जो फेके अब हम पर,
फिर उसको भी बचना होगा |
लोहे से टकराने का फिर,
अब हरजाना भरना होगा |

गाँधीगिरी चलाने से पहले,
हमको सुभाष बनना होगा |
सत्याग्रह को त्याग यहाँ,
अब क्रांतिकारी बनना होगा |

हांत के पाँचो उंगली को,
सहयोग यहाँ देना होगा |
और पूराने मानचित्र मे,
रंग नया भरना होगा |

घर के अंदर के शत्रु को,
अपना सर देना होगा |
यार दो मुहे साफॉ का फन,
हमे कुचल देना होगा |

हम छमा करे इससे पहले,
कुछ दंड यहाँ देना होगा |
हो मान धरा पर कुछ अपना,
हमको विषधर बनना होगा |

ख्वाब अगर उँचा है फिर तो,
कदम बढ़ा चलना होगा |
और विश्व के मानचित्र को ,
भारत मय करना होगा |

Monday, September 22, 2008

शांति के राज दूत बापू




यार अहिंसा के द्योतक को,
हमने क्या क्या दिखा दिया|
हिंसा के कारक पर हमने,
बापू का फोटो लगा दिया|

वो सामिल हैं घुसखोरी मे,
छोटी से छोटी चोरी मे |
राम राज का स्वप्न यहाँ अब,
बंद है आज तिजोरी मे |

अब उसके खद्दर के अंदर,
उनके हर अरमान जलते है |
यार पहन कर अब खादी,
यहाँ लोग घोटाला करते हैं |

अब उसके लाठी के उपर,
राज यहाँ पर चलता है |
जिस दीवार पर चित्र लगा हो,
सब प्लान वही पर बनता है |

अब बापू के जन्म दिवस पर ,
ड्राई डे हो जाता है |
पर मदिरा बहती है निर्झर,
दाम ज़रा बढ़ जाता है |

यार अहिंसा के द्योतक को,
हमने क्या क्या दिखा दिया |
विश्‍व शांति के राज दूत को,
सोचो हमने क्या बना दिया |

Sunday, September 21, 2008

कुछ मृग-त्रिस्ना की प्यास भी हो

एक बार मुझे मई मिल जाऊ ,
खुद के सपनो मे दिख जाऊ |
मंज़िल की चाह जागे दिल मे,
जिस पथ पर मैं पग धार जाऊ |

कुछ यार अहम का भाव भी हो,
सब कुछ पाने की चाह भी हो |
हो शूल बिछे कुछ राहों मे ,
कुछ प्रतिस्पर्धा का भाव भी हो |

मुझको ठुकरा कर जाने में ,
उसे दर्द का कुछ आभाष तो हो |
वो भूल ना पाए यार मुझे ,
इस बात का फिर विश्वास तो हो |

है बना काँच का तन मेरा ,
जब टूटे तब झंकार भी हो |
है सांस बची जब मरुथल मे,
कुछ मृग-त्रिस्ना की प्यास भी हो |

मेरे यार खुशी के मौके पर ,
कुछ अस्कों की बौछार भी हो |
प्यार मिले कुछ पाने पर,
कुछ खोने पर फटकार भी हो |

कुछ खून मे हो गर्मी अपने,
कुछ यार छमा का भाव भी हो |
कुछ रिस्टो मे हो कड़ुआहट,
कुछ रिस्तो मे बस प्यार ही हो|||||||

Tuesday, September 16, 2008

उड़ने की कोशिश




मैं यार यहाँ बिन पँखो के ,
उड़ने की कोशिश करता हूँ |
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ मे,
पैदल चलने से डरता हूँ |

मैं यार खुली आँखों से अब,
कुछ सपने ढूँढा करता हूँ |
इस सपनो की दुनियाँ मे ,
अब खो जाने से डरता हूँ |

जो यार नही मेरा अपना ,
मैं उसको ढूँढा करता हूँ |
मैं यार मतलबी दुनियाँ मे ,
तन्हा रहने से डरता हूँ |

मैं यार समंदर के तल पर ,
कुछ मोती ढूँढा करता हूँ |
मैं यार आलसी दुनियाँ मे ,
मेहनत करने से डरता हूँ

मैं यार तरंगो की दुनियाँ मे,
कुछ खुशियाँ ढूँढा करता हूँ |
मैं रंग बिरंगी दुनियाँ के,
काले धब्बों से डरता हू |

शैतान का डर




ना राम से डर है ,
ना ही रहमान से डर है |
नही मज़हब यहाँ जिसका,
उसी शैतान का डर है |

दीवारे यार फौलादी है,
और हर राहो पर पहरा है|
छुपा है यार जो घर मे उसी,
उसी भेदी का बस डर है|

मुझे मुझसे जुदा करने को,
चले चाले जो अब हर पल |
मेरी परछाईयो को यार,
उस काली रात का डर है |

मुझे जो पास अपने रोक कर ,
फिर बरगलाता है |
करे जो रूह काबू मे,
उसी पंडित से ख़तरा है |

नही डर कुछ धमाकों से,
जो पसरा इस शहर मे है |
जो फूँके जहर कानों मे ,
उसी मुल्ला से ख़तरा है |

ये घर अपना है कहने को ,
लगा हर ईंट अपना है |
जो नीचे जानवर है ,
अब उसी अपने से ख़तरा है|

Saturday, July 5, 2008

उड़ने की कोशिश


main yaar yahaan bin pankho ke,
udne ki koshish karta hun
ish bhid bhad ki duniyaan me,
paidal chalne se darta hu|

Saturday, March 15, 2008

आसमा माँगता हूँ

हर साल कुछ मै नया माँगता हूँ
ज़मीन चाहिए आसमा माँगता हूँ |
जो रहते है खुद बादलों मे हमेशा,
मैं उनसे ही फिर असमान माँगता हूँ |

जो रह ना सके इस धारा पर हमेशा
मैं उनसे यहाँ ज़िंदगी माँगता हू |
जो खुद को बचा ना सके ज़ालिमो से,
मैं उनसे यहाँ रहनुमा माँगता हूँ |

कल क्या था माँगा नही याद है अब ,
अतः आज फिर कुछ नया माँगता हूँ |
है सेंटा वही , झोली भी है पूरानी ,
पर हर दम ही कुछ मैं नया माँगता हूँ |

जो सपनो मे आता है बन के फरिस्ता ,
मैं उसके लिए ये जहां माँगता हूँ |
जगाता है जो हसरते रूह बन कर ,
मैं उसके लिए अस्थियाँ माँगता हूँ |

जो आदि है रहने का ब्र्फ़ो मे अब तक,
मैं उसके लिए गर्मियाँ माँगता हूँ |
हर साल कुछ मैं नया माँगता हूँ
ज़मीन चाहिए आसमा माँगता हूँ |

Thursday, January 10, 2008

समस्या ये है समाधान नही है.......................................

समस्या ये है
समाधान नही है..................
.....................कृपया मदद करे....
आपका अपना तपशवनी


उसके छोटे छोटे कपड़े भी,
अब फैशन कहलाते है
और बाहें उपर करने पर ,
हम लोफर बनजाते है


वो यार कड़ाके की शर्दि मे ,
हॉट हॉट कहलाती है
हम घूमे गर बिन स्वेटर ,
तो निम्न श्रेणी मे आते है

यार बराबर का हक भी है,
आरच्छन भी मिलता है
मुझे देख कर कंडक्टर भी,
आगे बढ़ ले ये कहता है

हर चौराहे पर उसको ,
दस भाई मिल जातें है
चाहे ग़लती उसकी ही हो ,
हम ही मारे जाते है

उसके एक आँसू के आगे,
एक भी दीवार नही टिकती
अपने अस्कों के सागर से ,
यहाँ एक भी इंट नही हिलती

उनपर अबला का ट्रेड मार्क,
हम आवारा से सजते है
उसके संग सारा समाज,
हम यार न्यूज़ के मुद्दे है




ये हर व्यक्ति कि अलग अलग विचार धारा है कृपया बुरा सोचे लेकिन बुरा न बोले॥
धन्यवाद