Thursday, December 25, 2014

ठंडी और मित्र

बड़ी ही बेरूखी से सब,
हैं बैठे बस रजाई में ।
न कोई ख़त, न कोई खैर,
हैं बस, दुबके चटाई में ।

अगर अब भी न आया होश,
सुन आनंद की बातें ।
कि कोई फेंक दे पानी,
वहाँ जा कर रजाई में ।

लगेगी ठण्ड जब चुभने,
सुई की भाँति रग रग में,
फिर मत आना सुनाने हाल,
फिर इस गर्म कमरे में ।

Sunday, November 9, 2014

मेरा गुल्लख

जब दर्द छुपा न पाया तब,
बरबस मेरा गुल्लख बोल पड़ा ।
दम घुटता है अंधियारे में,
ये कहते हिम्मत छोड़ गया ।

जो व्यथा सुनाई गुल्लख ने,
सुनते ही आँखें भर आई ।
जो चिंतित है मेरी खातिर,
क्यूँ मिली उसे फिर तनहाई ।

गुल्लख.....
क्यों छुपा के कोने रख्खा है ।
मुझको छोडो अब जाने दो।
महंगाई की मार बहुत है,
अब यूँ ना मुझको ताने दो ।

छुटकी बिटिया चिल्लर के संग,
अपने सब सपने रखती है ।
जोभी दिल में होता है,
दिल खोल, मुझी से कहती है ।

पिन, चाकू, छुरी चम्मच,
हर मार सही,  बिन बोले ही।
दुनियां की बात नहीं आनंद,
सब जख्म मिलें हैं अपने ही ।

चाहे खाएँ हो लाख जख्म,
पर खुला नहीं मैं गैरों से।
जब तक हिम्मत थी मुझमे,
मैं डटा रहा हर पहरों में ।

बिटिया की इच्छाओं से,
अब बरबस ही डर लगता है।
जो सोच रही है मन में ही,
मेरे संग मेरा गुल्लख रक्खा है ।

मैं कैसे कहूँ, उसे की मैं,
एक आदत हूँ, उपचार नहीं ।
मैं संरक्षण सिखलाता हूँ,
मैं कोई कोषागार नहीं ।

मैं तुम्हे सिखा सकता हूँ,
कैसे संचित करें धरोहर को,
पर तुम्हे बचा न पाउँगा,
मैं कोई, गड़ा भण्डार नहीं।

जब दर्द छुपा न पाया तब,
बरबस मेरा गुल्लख बोल पड़ा ।
अब दम घुटता, अंधियारे में,
ये कहते हिम्मत छोड़ गया ।

Monday, October 13, 2014

थोडा गुरुर रहने दे

सुरूर तुझको है, तू रख उसे करीने से,
थोड़ा गुरुर मुझमे है, उसे भी रहने दे  । 

मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही रहने दे आनन्द,
मौत के बाद तो, हम सबको खाक होना है ।

तुझे गर फ़िक्र है दुनियां कि, ये भी बेहतर है,
मुझे फिर खुद में ही, थोड़ा सुमार रहने दे  ।

तुझे कुछ इल्म है, दुनियां की हक़ीक़त अगर,
मुझे जाहिल, थोड़ा अनपढ़, गँवार रहने दे ।

मोहोब्बत  का फरिश्ता तू, मिटा नफरत,
मुझे  तू प्यार का दुश्मन समझ, और बहने दे ।

सुरूर तुझको है, तू रख उसे करीने से,
थोड़ा गुरुर मुझमे है, उसे भी रहने दे  । 



Wednesday, October 1, 2014

सामने आया न करो ।

तुम्हे मगरूर कह कह के,
बनाई है दुकाँ हमने,
फिर तुम यूँ मासूम सी,
दुनियां को न दिख जाया करो । 

बिना कहे ही सौ नक़ाब,
भिजवाया था तुम्हे । 
बिना नक़ाब के,
फिर तुम सामने आया न करो । 

Tuesday, September 23, 2014

जुड़ जाने का दिल करता है...

अच्छा लगता है, जब अपने,
उमड़ घुमड़ आ जातें है । 
छोटे सपने, बड़ी उम्मीदे,
बिन चाहे, घिर जातें है । 

उठा-पटक, धींगा-मस्ती,
हम जिन संग किये न थकते थे । 
बड़ा अटपटा लगता है,
जब वो ही सीधे हो जातें है । 

तोड़ के सारे बंधन,
फिर जुड़ जाने का दिल करता है । 
छोटी जिद्द और बड़ी शरारत,
दिल दोहराने को करता है । 

हर मोड़ पर दिल का खोना,
रोते रोते, दिन भर सोना । 
वो ख्वाबों में खो जाना,
और फिर ढूढ़ें नया बहाना । 

वो पैदल पैदल, कर करतल,
कुछ गलियों में गुम हो जाना । 
और शाम होते ही बरबस, 
अच्छा बच्चा बन घर आ जाना । 

अच्छा लगता है, जब अपने,
उमड़ घुमड़ आ जातें है । 
छोटे सपने,,………। 

Dedicated to all R.K I.C friends....


Saturday, August 30, 2014

ऐ ज़िन्दगी

ऐ ज़िन्दगी,
लगा हुआ हूँ समझने, तुझे मैं वर्षों से,
और एक तू है जो हरपल ही बदल जाती है ।
यूँ तो बदनाम है, झुरमुठ का पुराना गिरगिट,
पर कितने रंग तू , बस यूँ ही बदल जाती है ।

न कोई ग़म, न रहम, तेरा किसी पर भी ।
तेरी तर्कस के , हर एक तीर तू चलाती है ।
यूँ तो बदनाम है, अदनी सी चिंगारी और हवा,
तू सोच, पल में कितने घर, तू जला जाती है ।