Saturday, August 6, 2011

मैं नंगे पग चलना चाहूँ |

रिश्तों कि डोरी पकडे मैं,  कुछ और दूर चलना चाहूँ,
लुक्का छुप्पी कर उलझन से, बचपन में जीना चाहूँ |
 छूट गया जो वर्षों पहले, बचपन के चौराहों पर तब,
उसी पुराने सकरे पग पर, मैं नंगे पग चलना चाहूँ  |
माना थका नहीं हूँ अब भी मैं, हंसी, ठिठोली, बोली से पर,
अम्मा कि आँचल  में छुप कर, फिर  बच्चों सा रोना चाहूँ |

Sunday, July 3, 2011

पाती

आग कुछ ऐसी लगी,
रिश्तों के खर पतवार में |
ढाई आखर भी नहीं,
कह पाए हम फिर आप से |
वो राह के रिश्ते ना थे,
जो जुड़ गए खुद आप से |
खुद आपने भेजी थी पाती,
दोस्ती के आस से |

Monday, February 7, 2011

आज भी भुला नहीं, कॉलेज में पहला दिन तेरा |

आज भी धुंधले सही,
पर याद हैं कुछ रास्ते |
एक वो है जिस पर घर तेरा,
दूजा जहां देखा तुझे |

सोचा कभी सच बोल दूँ,
सब भेद दिल के खोल दूँ |
पर रुक गएँ पग, जम गएँ लभ |
जब सामने देखा तुझे |

वो झुक के चलने कि अदा,
चेहरे पर  बालों कि घटा |
वो डर से सहमा तन बदन,
कैसे मैं भुलूँ वो दास्ताँ |

ऐसा न कि देखा नहीं,
चंचल बदन, मुख चन्द्रमा |
पर आज भी भुला नहीं,
कॉलेज में पहला दिन तेरा |