Friday, September 21, 2012

तेरी तलाश में

कहने को चार दिन कि थी, ये ज़िन्दगी अपनी |
शदियों गुजर गएँ , एक तेरे इंतजार में |
कहतें थें  जमी गोल है, टकरायेंगे एक दिन,
तब से सफ़र में हूँ, मैं बस तेरी तलाश में |

Sunday, August 12, 2012

बचपन Part1

बड़े सपनों की जब औकात थी,
गुल्लख से नपने की,
सुनाऊंगा तुम्हे मैं बात,
कुछ अपने ही बचपन की |

जब सिक्का एक का,

पड़ता था दस के नोट पर भारी |
खनक गुल्लख की लाती थी,जब एक मुस्कान फिर प्यारी |......... 

धनुष ले  हाँथ में,
एक पल में यारों राम बन जातें |
कभी घुटनों पर जा बैठें,
और हम रहमान बन जातें |


धर्म और जात का अंतर,
जब हमको पता ना था |
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा भी,
सब एक  जैसा ही  था |


कई किरदार थे अन्दर,
जो बहार आ ही जाते थे |
कभी चड्ढी पहन के मोगली,
कभी घुमे गोल और शक्तिमान बन जातें |


घूम्चियों के बीज जब.
मोती से सुन्दर थे |
बड़े ही चाव से हम,
फिर घुम्चियाँ धागों में बुनते थे |


मिटटी खोद कर जब, 

केचुए, हांथों से चुनते थे |
चारा मिल गया ये सोचकर,
दिल खोल हँसते थे |

कांटा चार आने का,

फंसाकर अपनी  बंसी में |
निकल  पडतें थे नंगे पांव,
घर में शार्क लेन को ||| 

जारी..

Saturday, April 21, 2012

तू जब तक दूर थी ..


तू जब तक दूर थी, तेरी कमी हर पल अखरती थी,
तेर संग जीने मरने कि, बड़ी ख्वाहिस उमड़ती थी |
मैं हर पल ढूंढता था अक्स तेरा हर किसी में पर,
थे  बीतें साल कितने ही, कोई तुझसी  न दिखती थी |

To be continued..       By Tapashwani Anand