Sunday, October 25, 2009

दुनिया बदलने वाली है

मन तरंगों संग हिलोरे ,
ले रहा है आज कल |
कौन जाने कौन सी,
दुनिया सवरने वाली है|
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घुप्प अँधेरे रात में,
बिजलियों की ये चमक |
ये इशारा कर रही है,
रात छटने वाली है |
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बाग में पीपल के पत्ते,
गिर गए तो क्या हुआ,
अब कपोलों की छटा,
हर और दिखने   वाली है |
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आँख से निकले ये आंसू,
दे रहे पैगाम कुछ,
रेत के इस ढेर से,
गंगा गुजरने वाली है |
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एक नए सुरुआत की, 
आओ पहल मिल कर करे |
कल हमारे सोच से,
दुनिया बदलने वाली है |

Tuesday, October 6, 2009

डर क्यूँ है?

अकेला ही चला था,
साथ अपनो का तज के|
जो मेरे साथ न था,
फिर उससे शिकायत क्यूँ है?

जब मैं यहाँ हर मोड़ पर,
अपनो से बचता आया हूँ|
आज इस मोड़ पर ,
अपनों कि जरूरत क्यूँ है?

जब नहीं सोचा कि,
अंजाम क्या होगा इसका |
आज उसी सोच से,
आनंद मुझे घिन्न क्यूँ है?

छुपाता हूँ मैं खुद को,
सैकडों चहरे के तले |
मैं जैसा हूँ नहीं,
फिर वैसा दिखावा क्यूँ है?

जहां जाता हूँ मै,
आनंद बदल जाता हूँ |
रेशमी रूह पर फिर,
खद्दर का चढावा क्यूँ है?

बना रखा है फिर,
काजल से घरौंदा अपना |
पतित होकर भी मुझे,
दाग से नफ़रत क्यूँ है?

किया है काम जैसा,
फल भी वैसा ही होगा |
जब नहीं मानता फिर,
रब से इतना डर क्यूँ है?