मन तरंगों संग हिलोरे ,
ले रहा है आज कल |
कौन जाने कौन सी,
दुनिया सवरने वाली है|
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घुप्प अँधेरे रात में,
बिजलियों की ये चमक |
ये इशारा कर रही है,
रात छटने वाली है |
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बाग में पीपल के पत्ते,
गिर गए तो क्या हुआ,
अब कपोलों की छटा,
हर और दिखने वाली है |
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आँख से निकले ये आंसू,
दे रहे पैगाम कुछ,
रेत के इस ढेर से,
गंगा गुजरने वाली है |
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एक नए सुरुआत की,
आओ पहल मिल कर करे |
कल हमारे सोच से,
दुनिया बदलने वाली है |