हर साल कुछ मै नया माँगता हूँ
ज़मीन चाहिए आसमा माँगता हूँ |
जो रहते है खुद बादलों मे हमेशा,
मैं उनसे ही फिर असमान माँगता हूँ |
जो रह ना सके इस धारा पर हमेशा
मैं उनसे यहाँ ज़िंदगी माँगता हू |
जो खुद को बचा ना सके ज़ालिमो से,
मैं उनसे यहाँ रहनुमा माँगता हूँ |
कल क्या था माँगा नही याद है अब ,
अतः आज फिर कुछ नया माँगता हूँ |
है सेंटा वही , झोली भी है पूरानी ,
पर हर दम ही कुछ मैं नया माँगता हूँ |
जो सपनो मे आता है बन के फरिस्ता ,
मैं उसके लिए ये जहां माँगता हूँ |
जगाता है जो हसरते रूह बन कर ,
मैं उसके लिए अस्थियाँ माँगता हूँ |
जो आदि है रहने का ब्र्फ़ो मे अब तक,
मैं उसके लिए गर्मियाँ माँगता हूँ |
हर साल कुछ मैं नया माँगता हूँ
ज़मीन चाहिए आसमा माँगता हूँ |
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