Tuesday, October 21, 2008
" ऊर्जा "आज का युवा और गिरती राजनीति
ऊर्जा हमी मे है कि हम, ब्राम्हांड का निर्माण कर दें |
और जब भटके कभी तो, विश्व का निर्वाण कर दें |
चाहे तो हमे कर नियंत्रित, उर्जा का भंडार कर लो |
या तो घट जाए ग़लत कुछ, इससे पहले ही निकल लो |
हम भी काँटों से बने है, ना समझ हमे फूल रौंदो |
नासूर बन जाए यहाँ ,तुम इससे पहले ही सुधर लो |
छोटे से ढेले है, ना मसलो , चूर हम हो जाएँगे |
पर उड़ के आँखो मे गये तो, आँख ही ले जाएँगे |
बन के तमासाई ,ना अब तमाशा यार देखो |
गर मदारी हम बने, बंदर हमारे यार तुम हो |
है अनियंत्रित कण, हम जब निकले तो टकराएँगे |
अपनी तो हस्ती नही कुछ,तुझको मिटा कर जाएँगे |
रोक लो आँधी, और बहने दो हवा कुछ मंद |
खुशबू हो चारो तरफ, और फैला हो आनंद |
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