कैसे लिखूं और क्या लिखू,
ये कौन बतलाता मुझे |
सोच में है क्या कमी,
ये कौन समझता मुझे
दोस्त दुश्मन और खुद मै,
खुद से इतना दूर था |
जो लिख रहा हूँ वो सही है|
कैसे समझ आता मुझे |
कहने को तो मौके कई,
आए स्वतः ही सामने |
अहमियत हर बात कि,
फिर कौन समझाता मुझे |
बात पूरी या अधूरी,
जो समझ आती गयी |
आंख मुदे फिर कलम,
बिन बात लहराती रही |
कैसे लिखूं और क्या लिखूं
ये कौन बतलाता मुझे |
सोच में है क्या कमी,
ये कौन समझाता मुझे |
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