एक पेड़ के छांया ने,
फिर हमको पनाह दी,
जिस पेड़ के जड़ ने,
मेरी दिवार ढाई थी |
फिर हमको पनाह दी,
जिस पेड़ के जड़ ने,
मेरी दिवार ढाई थी |
टुटा जो मेरा आसियाँ,
गलती न थी उसकी,
वो पौध घर के साथ,
हमने ही लगायी थी |
गलती न थी उसकी,
वो पौध घर के साथ,
हमने ही लगायी थी |
मुस्कुरा के जी सकूँ,
इतनी से चाह ले |
आ गया सब छोड़ कर,
इतनी से चाह ले |
आ गया सब छोड़ कर,
इसकी पनाह में |
सिकवा गिला नहीं,
न कोई रंजिसे बाक़ी,
सुरुवात नयी ज़िन्दगी कि,
फिर करने यहाँ से |
जो बुरा था बीत गया,
बस इस ख्याल से |
आ गया आनंद यहाँ,
न कोई रंजिसे बाक़ी,
सुरुवात नयी ज़िन्दगी कि,
फिर करने यहाँ से |
जो बुरा था बीत गया,
बस इस ख्याल से |
आ गया आनंद यहाँ,
फिर मिलने जहाँ से |
bahut bahut dhanyawad Samir ji
ReplyDeleteaapka ashirwad pana mere liye bahut badi uplabdhi hai..
aage bhi mujhe aapke comment ka intjar rahega
Tapashwani K Anand