Thursday, September 30, 2010

इन्सान बाँट डाला

अब बांटने  का चस्का,
ऐसा लगा आनंद |
घर-बार बाँट  डाला,
और प्यार बाँट डाला |
जो फिर भी सुकूँ ना आया,
तो  संसार बाँट डाला  |
इधर छू कर गयी नहीं,
हवा साजिस लिए कोई |
हमने उधर तपाक से ,
जिस्म रूह बाँट  डाला |
ऊपर है जिसका राज़,
वो सायद जुदा ना हो  |
हमने जिसके नाम पर,
इन्सान बाँट डाला |

Saturday, September 4, 2010

फासले दरमियाँ

तुम्हे फुर्सत  ना थी, 
और हम भी व्यस्त  बहुत थे |
फिर ये जो फासले है दरमियाँ , 
वो  बे-वजह नहीं |
तुम खुद में थे मगन, 
और हम दुनिया कि खोज में |
ये लम्बी राह जो है दरमियाँ,
ये बे-वजह नहीं |