TAPASHWANI
बे रस होती आधुनिक काव्य और तकनीक
Saturday, September 4, 2010
फासले दरमियाँ
तुम्हे फुर्सत ना थी,
और हम भी व्यस्त बहुत थे |
फिर ये जो फासले है दरमियाँ ,
वो बे-वजह नहीं |
तुम खुद में थे मगन,
और हम दुनिया कि खोज में |
ये लम्बी राह जो है दरमियाँ,
ये बे-वजह नहीं |
1 comment:
संजय भास्कर
October 19, 2010 at 12:02 PM
truly brilliant..
keep writing..........all the best
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truly brilliant..
ReplyDeletekeep writing..........all the best