अब बांटने का चस्का,
ऐसा लगा आनंद |
घर-बार बाँट डाला,
और प्यार बाँट डाला |
जो फिर भी सुकूँ ना आया,
तो संसार बाँट डाला |
इधर छू कर गयी नहीं,
हवा साजिस लिए कोई |
हमने उधर तपाक से ,
जिस्म रूह बाँट डाला |
ऊपर है जिसका राज़,
वो सायद जुदा ना हो |
हमने जिसके नाम पर,
इन्सान बाँट डाला |
BLOG'S APPEARANCE NEEDS TO BE IMPROVED.
ReplyDeleteLONG PAUSE IS THE CAUSE OF STILLNESS...
जिस्म रूह बाँट डाला |
ReplyDeleteऊपर है जिसका राज़,
वो सायद जुदा ना हो |
हमने जिसके नाम पर,
इन्सान बाँट डाला |
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
ReplyDeleteBahut bahut dhanywad Mitra..
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