तन शीतल है यार मगर, ना जाने क्यूं दिल जलता है |
हूँ रुका हुआ मैं वरसों से, दिल मे हरदम कुछ चलता है |
रास नही कुछ भी आता, ना सूनापन मुझको भाता |
आँखों मे है कुछ धुंधला सा, जो स्पस्ट नही होता |
मैं कुछ भी भूल नही पाता, फिर कुछ भी याद नही आता |
कोई चेहरा अन्जाना सा, मैं जिसको भूल नही पाता |
ग्वालाएँ रास नही आए, ना राधा ही मन को भाए |
कृष्ण नही बनना चाहूं, ना रास बिना ये दिल माने |
आँखों में सागर मेरे पर, कंठ मेरे अब भी प्यासे |
ना कोई स्वर्ग की चाह मुझे, ना बीना मेनका आँख लगे |
ना मदिरा की प्यास मुझे, ना काम बीना मदिरा चलता |
ना देवदाश सा मैं पागल, ना बीन पारो ही मन लगता |
व्यथा मेरी सुन कर अक्सर, संसार ये कहता है हँस कर |
राम -राम की बेला मे, देखो बैठा है फिर पी कर |
तन शीतल है यार मगर,
ReplyDeleteना जाने क्यूं दिल जलता है
कृष्ण नही बनना चाहूं,
ना रास बिना ये दिल माने
राम राम की बेला मे,
देखो बैठा है फिर पी कर
बहुत खूब..
*** राजीव रंजन प्रसाद
very nice ..bahut hi sundar likha hai aapne ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना है।बधाई।
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