ख़ुद पत्थर पऱ मारेँ पैर,
ये काम नहीं है मर्दों का
मेनका ना बने अगर कोई,
तो विशवामित्र नही जनता
तन पऱ वस्त्र नही पूरे,
आँखों से खाख उतारेंगे
हो नीर बची गर आँखों मे,
तो हम भी ख़ुद के रावन को मरेंगे
गर सीता को छू लेने से ,
रावन का अंत सूनिस्चित था
फिर तो सीता को ह्रने में ,
सीता की सामिल थी इच्छा
हालात नही पैदा होंगे,
तो हर नर मे हनुमान होंगे
जहाँ एक अफ़सरा जन्मेग़ी,
दस इंद्रा वहाँ पैदा होंगे
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