Tuesday, September 11, 2007

ग़ज़लों से मोह नही किसको

अपनी यादों के गागऱ से ,
मैं रोज़ समंदर भरता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा,
मैं नाम उसी का रटता हूँ

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था हर बातों मे अर्थ छुपा,
सारी बातें तो व्यर्थ ना थी
था अंधेरे का कुच्छ मतलब,
सारी रातें तो व्यर्थ ना थी


सायद मेरे कहने का ढंग ,
रास ना आता हो उनको
जहाँ रोज़ महफिलें सजती हों,
ग़ज़लों से मोह नही किसको

1 comment:

  1. था हर बातों मे अर्थ छुपा,
    सारी बातें तो व्यर्थ ना थी
    था अंधेरे का कुच्छ मतलब,
    सारी रातें तो व्यर्थ ना थी


    bahut khoob likha hai ji

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