अपनी यादों के गागऱ से ,
मैं रोज़ समंदर भरता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा,
मैं नाम उसी का रटता हूँ
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था हर बातों मे अर्थ छुपा,
सारी बातें तो व्यर्थ ना थी
था अंधेरे का कुच्छ मतलब,
सारी रातें तो व्यर्थ ना थी
सायद मेरे कहने का ढंग ,
रास ना आता हो उनको
जहाँ रोज़ महफिलें सजती हों,
ग़ज़लों से मोह नही किसको
था हर बातों मे अर्थ छुपा,
ReplyDeleteसारी बातें तो व्यर्थ ना थी
था अंधेरे का कुच्छ मतलब,
सारी रातें तो व्यर्थ ना थी
bahut khoob likha hai ji